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कहानी गोरखपुर की ..(Based on true incident)..

हेमंत पांडेय (शिव सेना, शिंदे गुट)

आपके गोरखपुर की एक कहानी और उस कहानी का कैरेक्टर मेरी मुम्बई और मुम्बईकरों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है । तमाम स्टोरी राइटर इस कहानी के करैक्टर का इंटरव्यू करने को आतुर हैं लेकिन गोरखपुर का वो करैक्टर अभी इसके लिए तैयार नही है । पता नही इस इंकार के पीछे क्या राज है इसलिए सोचा कि आपको खुद बताता हूँ आपके गोरखपुर की एक कहानी ! आज से लगभग 12 वर्ष पूर्व एक लड़की की मौत उसी दिन हो जाती है जिस दिन उसका प्रेम विवाह होता है । लड़की की मौत के लगभग एक महीने बाद उस लडक़ी के पति पर जानलेवा हमला लडक़ी के घरवाले ही कर देते है । लड़की के घर वालो के खिलाफ हमले का मुकदमा लिखा जाता है लेकिन बाहुबल, बेईमानी और मक्कारी फिर अपना ठसक दिखाती है और सारी सच्चाई धरी रह जाती है । लड़की के घर वालो का कुछ नही बिगड़ता लेकिन हमले की इस घटना के पाँच दिन बाद उल्टा मुकदमा हमले में घायल युवक मतलब लड़की के पति पर लिख दिया जाता है । हमले में घायल उस युवक को पुलिस अस्पताल से निकाल कर जेल पहुँचाते हुए अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है । जेल, कोर्ट, कचहरी, मुकदमे से जिस युवक और उसकी सात पुश्तों का कभी नाता नही रहा हो ,वह युवक लगभग डेढ़ साल बाद जेल की चहारदीवारी से एक जुनून लिए बाहर निकलता है । इस मुकदमे और जेल ने उस युवक की सारी पढ़ाई लिखाई, तेज दिमाग,और भविष्य के सभी सपनों की बलि ले ली थी । इस घटना की सच्चाई को सबके सामने लाने का जुनून और जिद तो उस लड़के के अंदर जबरदस्त था लेकिन हालात बड़े मुश्किल थे । युवक पर इल्जाम था कि उसने अपहरण के बाद फिरौती मांगी और फिरौती न देने पर लड़की की हत्या कर लाश को छिपा दिया ।

2010 में दर्ज यह मुकदमा आज जिस कोर्ट में चल रहा है वह कोर्ट आज आवाक और हतप्रभ है क्योंकि तमाम गवाहों और अभियोजन पक्ष की सारी कसरतों को इस युवक ने एक झटके में जड़ से हिला कर रख दिया है । अब कोर्ट के सामने वो सबूत पेश हो चुके हैं जिसने बुरी तरह से सड़ चुके इस सिस्टम के स्याह चेहरे को बेपर्दा कर दिया है । इन सबूतों को कोई चाह कर भी अनदेखा नही कर सकता । ये सबूत बुरी तरह सड़ चुके इस सिस्टम को आईना दिखा रहे हैं कि जिस लड़की की मौत के इल्जाम में डेढ़ साल की जेल उस युवक ने काटी, वह लड़की अपने अपहरण के समय अपहृत नहीं थी बल्कि एन.सी.सी. के ट्रेनिंग कैम्प में ट्रेनिंग कर रही थी । सबूत यह भी चिल्ला चिल्ला कर बता रहे हैं कि उस लड़की की मौत हत्या नही बल्कि बीमारी की वजह से हुई थी और उसकी लाश का अंतिम संस्कार भी उसके घरवालों ने ही किया था ।

चौकिये मत, क्योंकि उस लड़की के मृत्यु प्रमाण पत्र तथा अन्य कागजातों से इस सनसनीखेज सच्चाई का खुलासा हुआ है जो उस लड़की के माँ बाप द्वारा ही उसकी मौत के बाद बनवाया गया था । लेकिन ये कागजात हासिल कर पाना इतना आसान नही था । साजिश करने वालों ने लड़की का मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के बाद उस मृत्यु प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया तथा 6 महीने बाद उसे निरस्त कराते हुए उसका डेटा सर्वर से डिलीट करा दिया था । मतलब सब खत्म ! लेकिन उस जुनूनी युवक ने बैंगलोर मुम्बई सब एक करते हुए एन.आई.सी. से लेकर सॉफ्टवेयर कम्पनी तथा हाइकोर्ट तक सब खंगाल कर रख दिया और आखिरकार डिलीट किये गए उस डेटा को रिकवर कराने में सफलता हासिल कर ली । इस डेटा के रिकवर होने के बाद नगर निगम गोरखपुर को यह लिखकर देना ही पड़ा कि यह सारा खेल यही हुआ था और नगर निगम का ही एक जे.ई.अशोक सिंह इस पूरे खेल का मास्टर माइंड था ।

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार आज जे.ई. अशोक सिंह प्रोमोट होकर बनारस में नौकरी कर रहा है लेकिन इन सबूतों के बाद कोर्ट ने जे.ई. साहब को अपने कटघरे में तलब कर लिया है । सारे खेल से अब पर्दा उठ चुका है..साजिश करने वालो के होश फाख्ता हो चुके हैं.. हाथों से तोते उड़ चुके हैं…सारा मामला उलट पुलट हो चुका है..बड़े बड़े चेहरों पर हवाईयां उड़ने लगी हैं क्योंकि अब तमाम लोगों के एक्सपोज़ होने का भयानक खतरा उत्पन्न हो चुका है । बहुत ही मजबूती और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ रची गई इस पूरी साजिश और कथानक को अपनी इच्छाशक्ति से पलट कर रख देने वाला आखिर वह युवक कौन है जिसने डेटा रिकवर करवा कर वो कारनामा कर दिखाया जो काम सिर्फ और सिर्फ पुलिस मतलब उस मुकदमे के विवेचक का था ।

अदालती परवाना

वो युवक कोई और नही, बल्कि वही पत्रकार सत्येंद्र है जिसे हम और आप बखूबी जानते हैं ! और शायद इसीलिए इन्हें खोजी पत्रकार कहा जाता है । क्या कहा, आप भी पत्रकार हैं ? तो क्या सच को खोज लाने का वैसा जुनून और जिद्द है आपके अंदर ? खैर छोड़िये बेकार की बात ! आप सिर्फ अफ़वाहें फैलाइये और ये सोचने की जहमत बिल्कुल न उठाइयेगा कि पाँच वर्षों में पत्रकारिता का कखगघ न जानने वाला पत्रकार सत्येंद्र आज आपके लिए,और आपकी झूठ पर खड़ी पूरी सल्तनत के लिए एक बड़ी चुनौती कैसे बन गया ? मुझे पता है कि आप नही सोचेंगे क्योंकि सोचने औऱ कॉम्पीटीट करने का माद्दा आप मे है ही नहीं !

खोजी पत्रकार सत्येन्द्र

हेमंत जी के फेसबुक वॉल से संग्रहित

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