हमारे मंत्री जी पर तो लक्ष्मी जी की असीम कृपा है। धन तो सारे बंधन तोड़कर मंत्री जी के यहाँ आमरण अनशन किये बैठा है । पैसा इतना है कि मंत्री जी पैसा इन्वेस्ट करने के बहाने ढूँढ रहे हैं । चुनाव आने वाले हैं तो किसी ने चैनल खोलने का धांसू आईडिया दिया और मंत्री जी ने मोटा पैसा डालकर नया हिंदी चैनल बना दिया। प्राइम टाइम चमकाने के लिए कोई बड़ा गोदी चेहरा चाहिये था तो मशविरे के लिए मुजरा बाई को फोन लगाया । काफी माथापच्ची के बाद “पव्वे वाले कव्वे” मतलब (सुधीर चरसिया) का नाम फाइनल हुआ । लेकिन मंत्री जी संतुष्ट नही थे । बोलने लगे कि इसका तो नशा उतर जाता है, कभी-कभी ये होश में आ जाता है। कोई ऐसा लाओ जो बिना पिये चौबीसों घंटे सरकारी भक्ति में पगलाया रहे ! तभी ड्रग दो.. अफीम दो.. गांजा दो..अबे मुझे ये दो..मुझे वो दो..चाहो तो मेरी ले लो… चिल्लाते हुए “अंडबंड गोस्वामी” ने वहाँ एंट्री मारी लेकिन मंत्री जी ऐसे लोगों से कोसो दूरी बनाकर रखते थे जिन्हें मिर्गी के दौरे पड़ते हों । अभी माथापच्ची चल ही रही थी कि तभी मैं आऊं.. मैं आऊं..मतलब म्याऊं, म्याऊं की आवाज सुनाई दी । मंत्री जी ने नजरें घुमाकर देखा तो सम्मोहिनी अस्त्र का ऐसा प्रहार हुआ कि देखते ही देखते “रूहबिका” का नाम फाइनल हो गया, वो भी डबल सैलरी में।
सफर के दौरान ट्रेन के स्लीपर कोच में बैठे एक शख्श ने बातों ही बातों में जब जाना कि हम पत्रकार हैं तो कहने लगा कि बृज भूषण सिंह ने महिला पत्रकार के साथ जो किया वो ठीक ही किया । साले ने मुँह खोलते ही कोढ़ पर नमक रगड़ दिया । पत्रकार होने के नाते सुनते ही तन बदन में आग लग गयी, नथुने फड़कने लगे, रगों में बिजलियाँ दौड़ने लगीं लेकिन कंट्रोल उदय..कट्रोल ! उसके मुँह खोलते ही जैसी भयंकर बदबू आ रही थी, वह स्पष्ट संदेश दे रही थी कि उस शख्श ने निहायत घटिया और सस्ती शराब पी रखी थी । वो बोला कि दो चार दिन पहले महिला पत्रकार पर वज्रपात बनकर टूट पड़ने वाले ब्रज के भूषण जैसे सिंह को दोष बिल्कुल मत दीजिये । पहलवान होते हुए भी सिंह साहब ने अपने क्रोध पर कंट्रोल कर लिया, उनके इस धैर्य की प्रशंसा करिए । साथ ही उठाकर पटका नही उसके लिए अल्लाह का शुक्रगुजार भी होना चाहिए । हमने उस शख्श से बहस करना मुनासिब नही समझा , क्योंकि मैं महँगी शराब पिये हुए था भले मुफ्त की रही हो ! वैसे भी सर अल्बर्ट आइन्स्टीन का कथन है कि “महँगी शराब पीने वालों को सस्ती शराब पीने वालों से नहीं उलझना चाहिए” ।
पत्रकारिता की पढ़ाई करने के दौरान बताया जाता है कि पत्रकार की भूमिका किसी चौकीदार या कुत्ते जैसी होती है, जो रात भर जागकर पहरा देता है और कुछ अप्रत्याशित देखने पर शोरगुल करता है मतलब भौकना शुरू कर देता है। इसीलिए अंग्रेजी में मीडिया को वॉचडॉग भी कहा गया है। दुख की बात यह है कि मीडिया ने पिछले कुछ सालों से शोर मचाने की अपनी आदत को बदलकर दुम हिलाना चालू कर दिया है। इसलिए अगर किसी पत्रकार को हल्का सा शोर मचाते देख बृज के भूषण वाले सिंह साहब ने उसे सरेआम दुत्कार भी दिया तो उसे इस बात का खास बुरा लगेगा भी नहीं और लगना भी नही चाहिए। क्योंकि पालतू कुत्ते जब कोई गलती करते हैं तो मालिक इसी तरह दुत्कार कर उन्हें उनकी गलती का एहसास कराते हैं, और जब कुत्ता अपनी गलती मान लेता है तो फिर वापस दुम हिलाने लगता है । और दुम हिलाते ही मालिक फिर खुश होकर उसे हड्डी या बिस्कुट दे ही देता है।
मालिक- कुत्ते के इस बेहतरीन रिश्ते में ऐसे नजारे लोगों के सामने अक्सर आते रहते हैं जो मनोरंजन के काम में आते हैं । इसलिए इसे एन्जॉय करिए । इस मैटर को ज्यादा सीरियसली न लीजिये और फालतू का चिल्ल पौं मचाना बन्द कीजिये । और यदि आपने सीरियसली ले भी लिया तो उखाड़ क्या लेंगे ? खामख्वाह में आपको शाम की पैग चढ़ेगी नही और पव्वे की जगह अदधा का खर्चा बढ़ जाएगा !