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जो सब छोड़ संतत्व की ओर चल निकला था, उसे छेड़ना नही चाहिए था !

के. सत्येंद्र

कई दशकों से क्रांतिकारी पत्रकारिता की मशाल अपने हाथों में थामे वरिष्ठ पत्रकार यशवंत उम्र के पचासवें पड़ाव पर जब पहुँचे तो सोचा कि बहुत हो गयी क्रांति ! जिस मुर्दा आवाम के लिए क्रांति की जा रही थी वो सोया हुआ था और सोया ही रहेगा । ये अहसास शायद जीवन के पचासवें पड़ाव पर हो चला था । गांधी जी का आंदोलन इसलिए सफल रहा था क्योंकि वो भीड़ को जगाने में सफल हो गए थे । उस वक़्त लोग जागरूक थे, लेकिन आज का आवाम मुर्दा हो चुका है इसलिए क्रांति की मशाल विसर्जित कर भड़ास फ़ॉर मीडिया के फाउंडर यशवंत संतत्व की राह पर बढ़ चले , पर क्या पता था कि जीवन मे फिर कोई लंपट और धूर्त अवतरित होगा और पुनः क्रांति की मशाल को उठाने के लिए मजबूर कर देगा ।

जिंदगी में मैने तीन प्रकार के लोगों को सदैव परेशान-हाल देखा है एक- वफादार, दूसरा-मददगार और तीसरा-इमानदार व दिल का साफ । बाकी दोगलों चापलूसों मक्कारों को तो हर जगह मैंने परफेक्ट और फिट ही देखा है । पत्रकार यशवंत जैसा बिना लाग लपेट और बेबाकियत के साथ लिखना बोलना खुलासे करना और लड़ना सबके बस की बात नही है । क्योंकि इस वैचारिक लड़ाई को सिर्फ वही लड़ सकता है जिसका स्वाभिमान जिंदा हो और मैं समझता हूँ कि यशवंत जैसे बचे कुछ मुट्ठी भर लोगों का स्वाभिमान अभी भी जिंदा है । लेकिन अपनी मतरिया बहिनिया कराने वाली इस दुनिया का उसूल यही रहा है कि जिनकी कामयाबी वो रोक नही पाते उनकी बदनामी शुरू कर देते हैं और जिन्हें हराने की कोशिशें सफल नही होती उनके खिलाफ साजिशें शुरू कर देते हैं ।

आज यह लिखना इसलिए पड़ रहा है कि पत्रकार यशवंत के साथ चल रहे वर्तमान प्रकरण और स्वतंत्र आवाज़ों पर हो रहे हमलों से सबसे ज़्यादा ख़ुशी पैरों तले बैठी, बिकी हुई, नाक रगड़ती तथा रीढ़विहीन हो चुकी गुलाम आवाज़ों को ही रही है। इन गुलामो और नाक रगड़ते रीढ़विहीनों को यह याद रखना चाहिए कि जब तुमने मीरा बनकर अपने पांव में घुंघरू बांध ही लिए हैं तो आज क्या, अब तो तुम्हे हमेशा नाचना पड़ेगा । सरकार कोई भी रहे लेकिन नाचना ही तुम्हारी नियति होगी और तुम्हे नचाने का वही हथकंडा अपनाया जाएगा, जो आज अपनाया जा रहा है ।

वर्तमान माहौल और बुज़दिली पर नवाज देवबंदी ने क्या खूब कहा है ..

जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है..
आग के पीछे तेज हवा है, आगे मुकद्दर आपका है !
उसके क़त्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नंबर तब आया….
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है !

यशवंत प्रकरण पर भारत एक्सप्रेस की रिपोर्ट

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