गोरखपुर के खोजी पत्रकार सत्येंद्र पर की गई फर्जी पुलिसिया कार्यवाही को लेकर मचे हो हल्ले के बीच खबर मिली है कि कुछ दिन पहले एकांत प्रवास के दौरान सत्येंद्र को काले नाग डस लिया । दबाकर खून निकालने से लेकर तीन चार जगह सुतली बांध सत्येंद्र बिना घबराए तुरंत स्वयं ही अस्पताल पहुँचे और लगभग तीन दिन बाद आज फिर चहलकदमी कर रहे हैं । विष के प्रभाव के कारण अभी कल तक जिस आदमी को नीम की पत्ती भी मीठी लग रही थी आज वो फिर जहर उगलने को खड़ा हो चुका है । एक तरफ सत्येंद्र के बच जाने की खबर पर बईमानों ने अपना माथा पीट लिया तो दूसरी तरफ इस घटना से व्यथित कुछ शुभचिंतक अपनी छाती पीटना शुरू कर चुके थे ।
बहरहाल सब सही है । साँप भले जहरीला था लेकिन उससे कहीं ज्यादा जहरीले निकले खोजी पत्रकार सत्येंद्र । चिंता होती है कि बेचारा सांप इस वक्त कहाँ होगा । जिस इंसान को उसने डंसा उस इंसान की नस नस में, और जुबान में यहाँ तक कि उसकी हलक में सौ सौ नागों का विष तैर रहा है । सोचता हूँ यदि बदकिस्मती से साँप जिंदा होगा तो ये शख्श उसे खोजकर आज नही तो कल उसका भी तियाँ पांचा कर देगा ।
मुझे तो चिंता है सिस्टम में बैठे उन बईमानों और मीडियाई सांप-सपोलों की जो देखने में बड़े मनोहारी हैं, मगर आदत से बड़े जहरीले। इंसान के गले में पड़कर पहले ये मस्ती में झूमते हैं और जैसे ही खूबसूरत समझकर इंसान इन्हें पुचकारना शुरु करता है, वैसे ही डस लेते हैं। सत्येंद्र तो मीडिया के इन सब सांपों के बीच में सबसे ज्यादा जहरीला है। सत्येंद्र बोले तो जहर उगले तो भी जहर , देखे तो भी जहर, नशे में हो तो भी जहर , नींद में हो तो भी जहर और हँसते रोते तो शायद हमने अब तक देखा ही नही । हो सकता है उसकी हँसी में भी जहर हो । इसलिए सोचता हूँ कि ज्यादा जहरीला कौन ? सत्येंद्र या उसे डंसने वाला वो काला नाग ! जो भी हो बईमानों दलालों और भ्रष्टाचारियों से हमारा गहरा नाता है इसलिए अपील है कि थोड़ा धैर्य रखते हुए सब्र करिए । अभी सावन चल रहा है ।
जिस सांप ने सत्येंद्र को डसा है, वह सत्येंद्र से छिपने के वास्ते ‘बिल’ का रास्ता पूछ रहा होगा….और सत्येंद्र के जहर में डूबा सत्येंद्र का ही गुणगान कर रहा होगा….सत्येंद्र के विष की तारीफ कर नशा महसूस करते हुए नाच रहा होगा…सत्येंद्र से पूछ रहा होगा, गुरु यह तो बताओ कि तुम्हारा जहर मुझसे भारी कैसे ? तब सत्येंद्र समझायेगा कि हम तो विषैले नहीं थे, भ्रष्टाचारियों बईमानों और मीडियाई मठाधीशों का जहर गटकते-गटकते हम तो (सत्येंद्र) काले-नागों से भी ज्यादा विषैले हो गये । अब हम पर तुम जंगली सांपों के काटने का भला क्या असर होगा ?