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ग्यारह घंटे बाद मौत आई.. और एम्बुलेंस 12 घंटे बाद !

गोरखपुर : जी हाँ, ये सच नही कि मौत अपनी जगह जल्दी पहुँच गयी, बल्कि सच यह है कि मौत के बाद ही भ्रष्ट और मक्कार सिस्टम की तन्द्रा टूटती है ।  रात मोबाइल फोन बंद कर और कैमरा ऑन कर शहर की सड़कों पर घूमना मुझे इसलिए शुकुन देता है क्योंकि रात के अंधेरों में सिस्टम का स्याह चेहरा बड़े करीब से काफी साफ दिखाई देता है । कल रात भी मैंने देखा कि सिस्टम की भ्रष्ट और कामचोर व्यवस्था की कीमत सिर्फ गरीब और आम इंसानो को ही नही बल्कि बेजुबानों को भी चुकानी पड़ रही है । पशुओं के इलाज और रेस्क्यू के लिए बने पशु चिकित्सालयों तथा इन विभागों में तनख्वाह और सुविधाओं के नाम पर खर्च किये जा रहे रुपयों को मुफ्त में उड़ाने वाले मुफ्तखोरों के कदाचार की भेंट आज एक बेजुबान फिर चढ़ गया । बुरी तरह से चोटिल कल रात से सड़क पर तड़प रहे एक कुत्ते की सड़क पर तड़प तड़प कर आज सुबह मौत हो गयी । कल रात से तमाम फोन करने के बाद भी जब विभागीय जिम्मेदार बेजुबान कुत्ते का रेस्क्यू नही कर पाए तो उसे संभालने खुद ही मैदान में उतरना पड़ा ।

मोहल्ले के पशुप्रेमियों ने भी भरपूर कोशिश की लेकिन विभाग से आये जिम्मेदारों ने इंजेक्शन लगाकर अपना कोरम पूरा किया और चलते बने । बेजुबान करीब ग्यारह घंटे तक दर्द से तड़पता रहा लेकिन रेस्क्यू के अभाव में आज सुबह लगभग 11 बजे उसकी मौत हो गयी । उस बेजुबान की मौत के बाद पशुकेंद्र से उसके लिए एम्बुलेंस पहुँची जो यदि समय रहते पहुँची होती तो शायद वो बेजुबान बच जाता । चूंकि अब मनुष्यता मर चुकी है इसलिए अब मुझे मनुष्यों की मौत पर बिल्कुल भी दुख नही होता क्योंकि इन मनुष्यों ने इस धरती को किसी और के रहने लायक छोड़ा ही नहीं है । इस मामले से व्यथित एक सामाजिक संस्था मुख्य पशुचिकित्साधिकारी के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने जा रही है । यदि शिकायत दर्ज नही होती है तो न्यायालय के जरिये मुकदमा दर्ज कराने की औपचारिकता पूरी की जाएगी ।

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