Subscribe Us on

घुंघरू सेठ को खुश करने के लिए लिखे गए “मुकदमे के घुंघरू बिखर गए” !

भारत मे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों को नोच नोच कर खाने वाले दरिंदों को जब पत्रकारिता का ट्यूशन देते हुए देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे द्रोपदी के कपड़े उतारे जा रहे हैं और जुआरी युधिष्ठिर की पगड़ी खिसक रही है । इस मृत लोकतंत्र का मन अठानवे ऐसे पत्रकारों से नही भरता जो कटोरे में तेल लिए घुंघरू सेठ के सामने नॉन स्टॉप मुजरा करते जा रहे हैं लेकिन दो ऐसे पत्रकारों से इन्हें इतना भय लगा रहता है कि पूरी कांस्पीरेसी के साथ प्लानिंग करते हुए इनके खिलाफ मुकदमा लिखा दिया जाता है । फिर मुकदमे तथा जाँच के नाम पर प्रताड़ना का वही घिनौना खेल और चंद महीनों बाद क्लीन चिट !

कुछ ऐसा ही घटित हुआ भड़ास के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत सिंह के साथ । तो अब क्या fsl की रिपोर्ट के बाद बेदाग निकले यशवंत को हुए मानसिक और आर्थिक क्षति की भरपाई कराएगी राजधानी पुलिस ? जब कानून में व्यवस्था दी गयी है तो क्या फर्जी मुकदमा लिखाने वाले के खिलाफ कार्यवाही करेगी राजधानी पुलिस ? यकीनन नही करेगी, क्योंकि अपनी जेब गरम करने और अपने घुंघरू सेठ को खुश करने के लिए ऐसे फर्जी मोहरों को बड़े प्यार से संभाल कर रखा जाता है ताकि वक्त बेवक्त इन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सके । हम तो तवायफों को बेगैरत समझते थे लेकिन पता नही था कि तवायफ भी सिर्फ अपना जिस्म बेचती है और अपनी आत्मा को बड़ी खूबसूरती से बचा ले जाती है । बहरहाल, fsl की रिपोर्ट का इंतजार जिन्हें था वो कर रहे थे लेकिन हम तो नतीजा पहले से जान रहे थे । इंतजार था कि मामला निपटते ही उस आई फोन पर मैं कब्जा कर लूँगा जो जाँच के नाम पर महीनों से मामाओं के पास जमा है, लेकिन भड़ासी बाबा से जब ये दिलीइच्छा मैंने जाहिर की तो बाबा ने कहा कि ” गांव बसा नही और लुटेरे पहले आ गए” !

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *