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हाईकोर्ट माँग रहा है स्पष्टीकरण, और महाचोट्टे माल कूटने में लगे हैं !

कुछ दिनों पूर्व बलिया में अपहरण और बलात्कार के एक मामले में वहाँ के सीएमओ को पीड़िता का परीक्षण कराने के लिए अन्य जिलों की खाक छाननी पड़ी क्योंकि बलिया में एक भी रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर मौजूद नही था । दुर्व्यवस्था का यह प्रकरण इलाहाबाद हाइकोर्ट को इतना नागवार गुजरा कि प्रदेश के डी जी हेल्थ को तलब कर लिया गया ताकि उनसे यू पी के जिला अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की कमी पर स्पष्टीकरण लिया जा सके । जाहिर सी बात है कि यू पी में मरीजों के अनुपात में रेडियोलाजिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी है लेकिन क्या वाकई स्थिति इतनी गंभीर है कि एक जिले में एक रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर भी तैनात नही किया जा सकता ? ऐसा बिल्कुल भी नही है । सरकार ने तो अपने खर्चे से कुछ ऐसे डॉक्टरों को रेडियोलॉजिस्ट की पढ़ाई तक करा डाली, जिनसे उम्मीद थी कि पढ़ाई पूरी कर ये सरकार का सहयोग करेंगे और प्रदेश में रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी को दूर करने में सरकार की मदद करेंगे । लेकिन सरकार की सारी प्लानिंग फेल इसलिए हो गयी क्योंकि रेडियोलॉजिस्ट बनकर बैठे ये डॉक्टर आगे चलकर डॉक्टर बनने की बजाय महाचोट्टे और भ्रष्टाचारी बन गए । इनका पेट और मुँह सूरसा के मुँह की तरह इतना ज्यादा बड़ा हो गया कि इन्होंने अपनी तनख्वाह को हाथ लगाना छोड़ ऊपरी कमाई से ही सारे संसाधन जुटाने शुरू कर दिए । पूरे प्रदेश की बात छोड़िये, यदि सिर्फ

मुख्यमंत्री के जिले गोरखपुर की बात करें तो सिर्फ यहीं चार चार रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर हैं । सीएमओ आफिस का डॉ अनिल कुमार सिंह सरकारी खर्चे पर रेडियोलॉजिस्ट बना हैं, लेकिन रेडियोलॉजी के काम मे उतना माल कहाँ जितना अस्पताल रजिस्ट्रेशन वाले पटल के प्रभार में है । इसलिए अस्पताल रजिस्ट्रेशन पटल से चिपककर ये जनाब अनवरत माल कूटे जा रहे हैं । दूसरें महान विभूति करैक्टर हैं जिला अस्पताल के कार्यवाहक प्रमुख अधीक्षक राजेन्द्र कुमार ठाकुर साहब ! ये भी रेडियोलॉजिस्ट हैं । जब तक रेडियोलॉजिस्ट रहे तब तक फर्जी रिपोर्ट बनाकर माल कूटते रहे और जब यहाँ से बेहिसाब दौलत की तमन्ना पूरी न हो सकी तो कार्यवाहक sic की कुर्सी पर काबिज होकर घोटाले में नीरव मोदी और विजय माल्या को भी टक्कर देने लगे । तीसरे महारथी हैं डॉ वी के सिंह ! ये भी रेडियोलॉजिस्ट हैं लेकिन राजेन्द्र ठाकुर के मुँह वाला खून इनको भी लग गया था और ये भी फर्जी रिपोर्ट चाँप कर बनाने लगे थे । तत्कालीन डी एम साहब को पता चला तो उन्होंने इनका “सेवा में श्रीमान” कर दिया । अब फिर से वापस आ गए हैं । चौथे डॉक्टर साहब हैं एस एन तिवारी ! पिछले लगभग सात साल से यही हैं लेकिन आज तक कभी इन पर कोई भी भ्रष्टाचार या पक्षपात का अंश मात्र भी दाग नही लगा इसलिए जिला अस्पताल के कीचड़ भरे साम्राज्य के बीच ये कमल जैसे खिले हुए हैं । है न गजब की व्यवस्था ? एक जिले में चार चार रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर, लेकिन इनमे से सिर्फ एक सरकार और जनता का काम कर रहा है, बाकी तो बस माल कूटने के लिए जैसे तैसे जमे हुए हैं । अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि ऐसी स्थिति में हाइकोर्ट में डी जी साहब क्या स्पष्टीकरण देते हैं, क्योंकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सेवार्थ भाव से हाइकोर्ट के समक्ष असल तस्वीर पेश कर चुके हैं ।

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