आत्मचिंतन करने का महत्वपूर्ण विषय है कि वर्तमान परिवेश में राजनेताओं और अफसरों की छवि आखिर क्यों तबाह हो रही है ? उनकी विश्वसनीयता क्यों खत्म हो रही है ? जनता में फैले आक्रोश को वे नियंत्रित क्यों नहीं कर पा रहे ? क्यों यह महान देश विखंडन की कगार पर धकेला जा रहा है ? किस तरह से कभी फटेहाल पत्रकार मालामाल हो रहे हैं ? क्यों अच्छे चिंतनशील तथा बुद्धिजीवी निष्क्रिय तथा उदासीन होते जा रहे हैं ? क्यों पी एम ओ कार्यालय मोदी जैसे वास्तव में बेदाग़ और देश हित की सोचनेवाले राजनेताओं को अनावश्यक निशाना बनानेवाले नेताओं के खिलाफ कोई वातावरण नहीं तैयार कर पा रहा है ? आखिर क्या कारण है कि सियासत की हवस ना रखनेवाले योगी जैसे निस्वार्थ संत स्वभाव वाले व्यक्तित्वों को विवादित बनाने की कोशिशों के विरुद्ध करोड़ों रूपये के विज्ञापनों के बूते मौज करनेवाली लॉबी भी कुछ नहीं कर पा रही ? क्या ये देश इतना खराब है ? क्या हमारे सत्तारूढ़ नेता बेदम और बेकार हो गए हैं ? क्या उनके चारों ओर जमा मंडलियों में सिर्फ ताली बजानेवालों की भीड़ है ? आखिर इतने सारे बदलाव और हितकारी फैसलों के बावजूद नरेंद्र मोदी तथा उनके वफादार साथियों की विश्वसनीयता को पलीता लगाने का मजमा आखिर कौन आयोजित कर रहा है ? क्यों सारे तथाकथित विश्वस्त आज नाकाम नज़र आ रहे हैं ?
बीबीसी के संस्थापक ब्यूरो प्रभारी मार्क टुली का नाम लिखूंगा तो पंचर कारीगरी का इतिहास रखने वाले पत्रकार अपनी खोपड़ी खुजाना शुरू कर देंगे क्योंकि उन्हें टुली और मूली के बीच का फर्क नही मालूम । मार्क टुली का कथन है “भारत की असली समस्या हमारी नौकरशाही की सोच है ! इस तंत्र को अहंकारी ब्रिटिशर्स ने गुलामों पर शासन के लिए बनाया था और आजतक इस सोच को बदला ही नहीं गया । अपनी कुर्सी बनाये बचाए रखने के लिए सत्तारूढ़ शक्तियों की खुशामद और उनको फुसला कर बहका कर गलत काम कराना ही ऊपर से नीचे तक भारत में पसरते भ्रष्टाचार की वजह है…” इसलिए पुनः कहूँगा कि प्रशासन और पुलिस का दबदबा ईमानदार पत्रकारों को जेल भेजने की कोशिशों पर मत खर्च कीजिये बल्कि पत्रकारिता की जड़ में घुसे उन पिस्सुओं को पहचानिए जिनकी पत्रकारिता की दुकान आपके थाने से शुरू होकर आपकी चौकियों पर खत्म हो जाती है । ये बुके और प्रमाण पत्र लेकर कभी बिजली विभाग को सम्मानित करने पहुँच जाते हैं तो कभी थानेदार सिपाही और दरोगा को । मजे की बात है कि पत्रकारिता दिन ब दिन गिरती जा रही है और पत्रकार सम्मानित होते जा रहे हैं । ये आपको सम्मानित करेंगे, फिर आपके साथ सेल्फी फोटू लेंगे और फिर इसी सेल्फी फोटू का उपयोग लोगो के बीच भ्रम पैदा कर अपनी जेबें गरम करने के लिए की जाएंगी । इनका स्तर तो ये हो चला है कि जब इन्हें कहीं से सम्मान नही मिलता तो ये एक दूसरे को सम्मानित करते हुए फोटू खिंचवा लेते हैं और उसे सोशल मीडिया में छितरा देते हैं ।
ख़ैर विषय से भटकूंगा नही बल्कि बात फिर से करूंगा भारत की कामयाबियों की जड़ में पलीता लगानेवालों की । ये सभी लोग दीमकों की तरह से सिस्टम को तबाह कर रहे हैं लेकिन सरकार चलानेवालों को इस पर ध्यान देने का वक्त ही नहीं है । ज़रा सोचिये कि क्या वजह थी कि नेहरु के समय से कांग्रेस की सभी हुकूमतों में जमकर घोटाले हुए । उनकी सूचियाँ किसके पास नहीं । उनके घोटाले भारत के अब तक के कुल बजट के बराबर हैं । लेकिन क्या उखाड़ लिया कांग्रेस का आप लोगों ने ? मोदी ने कौन सा घोटाला किया ? उनके चरित्र पर कोई दाग नहीं । योगी एक प्रबल सफल प्रशासक हैं लेकिन आपने उनको केवल बुलडोज़र बाबा बना कर रख दिया है । भाजपा का विजय रथ रोकनेवाले भाजपा के विरोधी पत्रकार तो हरगिज़ नहीं हैं । ये वो लोग हैं जिनको अपने वातानुकूलित दफ्तरों से निकलने की और फील्ड में जाने की फुर्सत नहीं । ये वो लोग है जिनकी खबरों पर यकीन करना जनता ने छोड़ दिया और इन्हें गोदी मीडिया का नाम दे दिया । ये वो लोग है जिन्हें अपना सी यू जी उठाने की फुरसत नही । ये वो लोग हैं जो सरकारों के काम को ग्रामीण जनता को समझा ही नही पाते । ये वो लोग हैं जिनका ध्यान मोबाइल फोन के नए मॉडल्स पर ज्यादा है । ये वे लोग है जो धन पिपाशु राक्षस बन चुके हैं, जो खुद समेत अपने परिवार को इस धरा से लेकर स्वर्ग तक की खुशियां सब कुछ पल भर में दे देना चाहते हैं और पत्रकारों को सताने में पूरी ताकत झोंक देते हैं और सरकार के लिए नित नए तथा मुखर दुश्मन तैयार करते जाते हैं । वक्त रहते चेत जाना जरूरी है क्योंकि यदि ऐसा ही रहा तो भाजपा नहीं निपटेगी बल्कि देश निपट जाएगा और यदि सरकार नहीं चेती तो माइक पर भारत को बांग्लादेश बनाने की धमकियाँ देने वाली गीदड़ भपकियाँ बदकिस्मती से सच साबित हो जाएंगी ।
मुख्यमंत्री कु मायावती जी को याद करिये कि वह प्रशासन और पुलिस के हाकिमों को कोल्हू के बैल की तरह कैसे रगडती थीं और उनसे सारी व्यवस्था कैसे थर्राती थी । क्या वह नरेंद्र मोदी जी से अधिक बेहतर थीं या योगी से अधिक असरदार हैं ? फिर क्या कारण है कि प्रशासन में उनके इशारे शासनादेशों से अधिक ताकतवर और असरदार होते थे ? इसलिए फिर कहता हूँ कि प्रशासन और पुलिस का दबदबा ईमानदार पत्रकारों को जेल भेजने की कोशिशों पर मत खर्च कीजिये बल्कि कभी दो चार बिना वजह लाडले बन चुके अधिकारियों की भी कुर्बानी दीजिये । कभी अपने उन चाटुकार पत्रकारों की भी जाँच खोल दीजिये जिनकी ब्रांडेड चड्ढियां कानपुर के अवनीश अवस्थी की तरह इनके भी करोड़पति होने की गवाही दे रही हैं । कभी उन पत्रकारों से किसी विषय वस्तु पर बात करके भी देख लीजिए जो खुद तो नशेड़ी और पंचर बनाने का इतिहास संजोए है और फोटू आईएएस आईपीएस के साथ खिंचवा कर फोटुओं की नीलामी करते फिरते हैं । ये वही लोग है जो चिल्ला चिल्ला कर सच को दबाने और साजिशें कर अपनी खबरें और करतूतों को दबवाने में लगे रहते हैं । ये ही शासन और उसकी छवि के दुश्मन हैं । इनके चेहरे चमकते रहें बस इनका मकसद इतना ही है । बाकि कालिख के लिए तो भाजपा, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद् सभी हैं ना !