कुछ भी कहिए पर बधाई तो बनती है भाई, क्योंकि हमारा देश भगवामय होता जा रहा है और मीडिया भड़वामय ! आस्था” का “दीपक” “अंधविश्वास” के “तेल” से जलता है और “तर्क” की “फूंक” से “बुझ” जाता है..!! भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स का ढोल पीटने वाली सरकारें अच्छी तरह जानती हैं कि सुतिया जनता जनार्दन को परमसूतिया कैसे बनाये रखना है । यू पी में भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान गढ़ती हुई वर्तमान नौकरशाही अब यह खेल खुल्लमखुल्ला खेल रही है । आकंठ भ्रष्टाचार की बैतरणी में गोते लगाने वाला उत्तर प्रदेश का चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग खुद अपने नौकरशाहों के हाथों कुछ इस कदर बीमार हो चला है कि अब यह व्यवस्था वेंटिलेटर पर अपनी आखिरी साँसे गिन रही है । कह सकते हैं कि यू पी स्वास्थ्य महकमे की व्यवस्था नौकरशाही के आकंठ भ्रष्टाचार के मकड़जाल में बुरी तरह उलझ कर अपना दम तोड़ रही है । यदि ऐसा न होता तो कुछ दिन पहले झांसी के मेडिकल कॉलेज में अपने नवजात बच्चों को जिंदा लेकर आए उनके मां-बाप, जाते समय अपने बच्चों को राख की तरह समेट कर न ले गए होते । उपरोक्त शाश्वत सत्य तो पूरे प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे है और साथ मे सी एम सिटी गोरखपुर के स्वास्थ्य महकमे का भी । यदि देखा जाए तो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे जिला अस्पताल गोरखपुर के कार्यवाहक प्रमुख अधीक्षक राजेन्द्र कुमार और उनकी भ्रष्टाचारी मंडली के दुर्दिनों की शरुआत तो बहुत पहले हो चुकी थी, लेकिन अहंकार गुमान तथा मूर्खता से लबरेज जिला अस्पताल गोरखपुर के नौकरशाह खुद ब खुद अपने आप ही उस कानूनी गड्ढे में गिर जाएंगे इसका अनुमान किसी को भी नही था ।
जहाँ तक मैं जानता हूँ, वहाँ तक लगभग हर लोकसेवक अपने कार्यकाल में इस कानूनी गड्ढे से बच कर रहने में ही अपनी भलाई समझता है लेकिन सी एम सिटी में पनपे इस आकंठ भ्रष्टाचार का मामला अब शासन से लेकर राज्यपाल तक होता हुआ सीधे कोर्ट की दहलीज पर पहुँच चुका है । दूसरी तरफ इस मामले को दबाने के प्रयास के तहत सिस्टम वेबसाइट मीडिया पर लैब तकनीशियन वी बी सिंह द्वारा दर्ज कराया गया मुकदमा भी अब खुद ब खुद कोर्ट की दहलीज में किसी भी वक्त दाखिल हो सकता है । जाहिर सी बात है कि मामला जब कोर्ट में खुलेगा तो भ्रष्टाचार की काली स्याही से रंगे 170 कलंकनुमा पन्नों के दस्तावेज को छानबीन के लिए पुलिस को कैसे सौंपा जाए इसकी पटकथा तैयार की जा चुकी है। अंदरखाने से यहाँ तक पता चला है कि कानूनी फंदे से बचने के लिए अपने ही हस्ताक्षर को फर्जी बताने वाले भ्रष्टाचारी साहब के हस्ताक्षर के नमूनों को भी विधि प्रयोगशाला से प्रूव कराने की तैयारी जोरो पर है और इस तैयारी के तहत इस मामले के पैरवीकार राज्य की सीमाएं तक लाँघ चुके हैं । यह तय है कि यदि हस्ताक्षरों के मिलान हो गए तो जल्द ही साहब कुर्सी से सीधे जेल तक बगैर किसी स्टॉपेज के पहुँचेंगे । हैरत तो यह है कि अर्जुन की तरह लक्ष्यभेदक दृष्टि रखने का दम भरने वाला गोरखपुर का अखबारी जगत भी इस मामले को उठाने और प्रसारित करने वाले सिस्टम वेबसाइट मीडिया को ही विलेन साबित करने में जुटा हुआ था । फिर भी कहना चाहता हूँ कि अगर जरा सी भी गैरत बची हो तो पत्रकार महोदय, तो आज के बाद सिर्फ पत्रकारिता ही करना, पत्रकारिता की आड़ में पेटकारिता नही !