छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने ठेकेदार सुरेश चंद्रकार के खिलाफ सड़क निर्माण में कथित भ्रष्टाचार की रिपोर्ट की थी । इसलिए मुकेश की हत्या की कर दी गयी । लाश को सेप्टिक टैंक में फेंककर सेप्टिक टैंक को प्लास्टर लगाकर कवर कर दिया गया । खुशकिस्मत था मुकेश कि अपनी मौत के बाद भी मान्यतप्राप्त सरकारी दल्ले बने भाँड पत्रकारों की जुबान पर अपनी चर्चा छोड़ गया ,अन्यथा ऐसे बहुत से मुकेश तो गुमनाम होकर कबका दफन हो गए जिनकी चर्चा भी नही हो पाई । या यूं कहें कि छत्तीसगढ़ राज्य था सो चर्चा हो गयी अन्यथा यूपी तो गौरी लंकेश जैसे कई उदाहरणों से पटी पड़ी है । यहां की पत्रकारिता तो चूमने चाटने की परंपरा का निर्वहन करते हुए “अंधेरी रात में …दिया तेरे हांथ में” के फार्मूले पर चल रही है ।
जब एक शिक्षक ने एक छात्र से पूछा कि “यमक अलंकार” किसे कहते हैं ? तो एक छात्र ने जवाब दिया कि जहाँ एक शब्द कई बार आये लेकिन उसके अर्थ अलग अलग हो तो उसे यमक अलंकार कहते हैं । शिक्षक ने कहा कोई उदाहरण बताओ तो छात्र ने कहा ...नारी बीच साड़ी है…कि साड़ी बीच नारी है..नारी ही कि साड़ी है…कि साड़ी ही कि नारी है । इसी तर्ज एक और छात्र ने उदाहरण पेश किया कि यूपी में धरना देने कोई इसलिए नही बैठता क्योंकि योगी ऐसी जगह धरने लगते है, कि धरने वाली जगह, कही धरने लायक नही रहती ! इसमें दो राय नही कि उपरोक्त दोनो उदाहरण यमक अलंकार के बेहद उम्दा उदाहरण हैं । जल्दी-जल्दी सबकुछ पा लेने की चाह में भ्रष्ट सिस्टम का अंडकोष चूमने वाले भांड पत्रकारिता के गिद्ध मुकेश जैसे पत्रकारों की शहादत को कभी समझ नही सकते क्योंकि भ्रष्ट सिस्टम का अंडकोष चूमने की ललक में बौराये पत्रकारिता के भाँडो की लाइन बहुत लंबी हो चली है ।
एक वाहियात सोच है कि दिल्ली लखनऊ के पत्रकार बड़े होते हैं.. बड़े अखबार और चैनल वाले बड़े होते हैं…और मान्यतप्राप्त वाले बड़े होते हैं । जी नही, ये बड़े नही होते बल्कि निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए ये बहुत बड़े वाले माधर… होते हैं । इनकी पत्रकारिता भी बड़ी होती है, इनके ताल्लुक़ात भी बड़े होते हैं इनकी तनख्वाह और गाड़ी भी बड़ी होती है, इन नाशपीटों के जान की क़ीमत भी बड़ी होती है और पत्रकारिता की दलाली में इनके वेश्यायी जिस्मो ईमान की कीमत भी बड़ी होती है । दिल्ली लखनऊ के पत्रकारों पर हमला लोकतंत्र और पत्रकारिता पर हमला होता है । उनके समर्थन में दिल्ली लखनऊ के प्रेस क्लब में पत्रकारों का जलसा होता है। पत्रकारिता का मर्सिया पढ़ने वाली सियासत भी होती है , और सड़क से संसद तक उनके लिए शोर भी मचती है । लेकिन दिल्ली लखनऊ से दूर छत्तीसगढ़ के बीजापुर का एक पत्रकार पत्रकारिता का कर्तव्य निभाते शहीद हो गया और बड़े पत्रकार मौन हैं । कल को सियासत भी पूछ लेगी ये मुकेश चन्द्राकर कौन है ? तब इन्ही बड़कों में से बेहद घटिया बेहया लोग निकलेंगे और कहेंगे कि कोई यू ट्यूबर था । पत्रकारिता के लिए पत्रकार मुकेश चंद्राकर का बलिदान उन बड़के पत्रकारों के लिए बड़ा विषय इसलिए नही है क्योंकि बड़का पत्रकार लोग तो “चूसनक्रिया” को ही पत्रकारिता और अपना सम्मान मान बैठे हैं ।