वक्फ़ बोर्ड जमीन घोटालों की ख़बर चलाना स्वतंत्र पत्रकार को पड़ा भारी.. गुर्गों ने बुलाकर इज्जत बख़्शी !

गोरखपुर : खबर है कि गोरखपुर में वक्फ बोर्ड से संबंधित जमीन की घपलेबाजी की खबर को पिछले कुछ दिन से एक स्वतंत्र पत्रकार प्रमुखता से उठा रहा था । ख़बर से बिलबिलाए वक्फ बोर्ड के गुर्गों ने पत्रकार महोदय को फोन कर बुलाया और खबरों को मैनेज करने के नाम पर पत्रकार साहब को मुतवल्ली बनाने की पेशकश की । बताया जा रहा है कि पत्रकार साहब ने मुतवल्ली की पेशकश को नामंजूर कर दिया । पेशकश नामंजूर होते देख गुर्गों का पारा सातवें आसमान पर चढ़ा और पत्रकार साहब की सारी इज्जत मान मर्यादा की पहले कायदे से माँ बहन की गई और उसके बाद छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की तरह लाश गायब कर देने की धमकी दी गयी । पत्रकार साहब मौके नज़ाकत भांप गए और गुर्गों की हाँ में हाँ मिलाते हुए आईन्दा खबर न चलाने का आश्वाशन देते हुए वहाँ से सटक लिए । घबराए पत्रकार महोदय भागते हुए कप्तान साहब के यहाँ पहुँचे और अपनी आपबीती सुनाई । कप्तान साहब द्वारा मामले का संज्ञान लिए जाने के बाद स्वतंत्र पत्रकार शाहिद मियाँ की सांस अब जाकर सामान्य हुई है । सिस्टम वेबसाइट मीडिया ने कल ही अपने एक खबर में बता दिया था कि पत्रकारों के साथ होने वाले ज्यादातर हादसों तथा साजिशों के मामलों में किसी न किसी पत्रकार की ही संलिप्तता होती है ।

इस मामले में भी स्वतंत्र पत्रकार शाहिद का कहना है कि शहीद मुबारक खाँ की मजार के पास बने आफिस में कोतवाली क्षेत्र की जघन्य पत्रकारिता करने वाले कुछ विशेष प्रजातीय पत्रकारों का रोज जमावड़ा होता है । इन विशेष पत्रकारों की पत्रकारिता का 90 प्रतिशत दायरा कोतवाली थानाक्षेत्र से शुरू होते हुए इसी थानाक्षेत्र में आकर खत्म हो जाता है । क्षेत्रीय थाने में भी इनकी पैठ काफी अच्छी बताई जाती है । क्षेत्रीय थानों की पुलिस सटीक सूचनाओं के मामले में आज के मुकाबले पहले ज्यादा बेहतर स्थिति में इसलिए होती थी, क्योंकि अंग्रेजों के जमाने से ही सटीक सूचनाओं की धुरी मुखबिरों पर केंद्रित हुआ करती थीं लेकिन जब से मुखबिरों की जगह दलालों ने ली है तब से स्थानीय थानों के पास लगभग हर मामलों में फर्जी सूचनाओं की भरमार होने लगी है । पत्रकार शाहिद बताते हैं कि इस पूरे मामले के पीछे उनके वही स्वजातीय बंधु पत्रकार लोग हैं जो कभी वक्फ़ की जमीनों को लेकर कलमतोड़ खबरें अपने अखबारों में छापते थे लेकिन ये मनहूस रुपये की भूख जो न करवाये ! बताया जाता है कि उस वक्त कलम की धार भोथरी करने के लिए “नज़राने की डायन” को सामने किया गया था और नज़राने की कूवत के सामने पत्रकारिता पेटकारिता में तब्दील हो गयी । नतीजतन वक्फ़ बोर्ड की जमीनों से संबंधित सिर्फ खबरें ही छपनी बंद नही हुई बल्कि कोई और छाप न सके इसका भी ठेका ले लिया गया ।

वक्फ़ के मामले में पुरानी छपी खबरों को नीचे देखें !

वक्फ़ की जमीन के घोटालों से संबंधित कलमतोड़ खबर छापने वाले जिन जिन पेटकार बधुओं को, नज़राने वाली डायन से जो जो नजराना प्राप्त हुआ है, उन नजरानो की सुलभ सुंदर बोलती तस्वीर भी सिस्टम वेबसाइट मीडिया को भेजी गई है लेकिन शाहिद साहब भी आजकल की पत्रकारिता का सबक भूलते हुए बुलाने पर उनके द्वार पहुँच गए, जिनके खिलाफत में वे खबरें प्रसारित कर रहे थे । याद रखिये पत्रकार साहब , कि आपके पेशे में चार कदम चोर से, 14 कदम लतखोर से, और 74 कदम चुगलखोर से दूरी बनाकर रखना बहुत जरूरी है ।

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