सत्ता-सरकार का गठन भ्रष्टाचार रोकने के लिए नही..बल्कि भ्रष्टाचार करने के लिए ही होता है !

गोरखपुर : ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (CPI) 2024 के अनुसार, भारत 180 देशों में 96वें स्थान पर है, जो 2023 की तुलना में तीन स्थान नीचे है। पिछले 10 वर्षों में,भारत की रैंकिंग में उतार-चढ़ाव देखा गया है । 2013 से 2024 तक की अवधि में, भ्रष्टाचार के मामले में भारत की रैंकिंग में कुल मिलाकर 2 स्थान की और गिरावट आई है जिस कारण हम बज्र भ्रष्टाचारी देश होने का वैश्विक पहचान अर्जित करते हुए भ्रष्टाचार के मामलों में नित नए कीर्तिमान गढ़ रहे हैं । फिर भी ये बिल्कुल भी न समझें कि हम यहाँ भ्रष्टाचार के नाम पर हो हल्ला, हाय तौबा मचाने या बकैती करने आये हैं बल्कि यह बताने आये हैं कि आपके गोरखपुर में विभागीय भ्रष्टचारियों का मिजाज फ़िलहाल कैसा चल रहा है । गोरखपुर विकास प्राधिकरण (GDA) का नाम सुनते ही यदि आपके मस्तिष्क में विकास की इमारतों, हरे-भरे पार्कों और सुव्यवस्थित सड़कों की तस्वीर दौड़ने लगती हैं, तो थोड़ा और सोचें ! असल में यह प्राधिकरण उन इमारतों और सड़कों के निर्माण में ज्यादा दिलचस्पी रखता है, जो “रुपये की नींव” पर खड़ी हो सकती हैं।

विकास की इस अजीब सी परिभाषा का अनुसरण करते हुए, यहाँ बिना पैसे दिए कुछ भी नहीं हो सकता । आप सोच सकते हैं कि गोरखपुर विकास प्राधिकरण में काम करने वाले कर्मचारी किस कड़ी मेहनत से काम करते होंगे, लेकिन हकीकत यह है कि यहाँ का सबसे बड़ा प्रयास “रुपये की रफ्तार” को बढ़ाना है। यदि आप एक छोटे से निर्माण कार्य के लिए अनुमति चाहते हैं, तो आपको प्रशासनिक बटुए की गहराई को छूना पड़ता है। वह गहरी गली जहाँ कोई फाइल बिना “वाजिब” राशि के बिना पास नहीं होती । हमारे देश की प्रशासनिक व्यवस्था का सबसे मजेदार और अजीब हिस्सा वह ‘बाबू’ होते हैं जो सालों से एक ही पटल पर जमे होते हैं। इन बाबुओं की कारगुजारियाँ और पेपर पर हस्ताक्षर का खेल ही सत्ता का असल रूप निर्धारित करता हैं । सालों से एक ही पटल पर जमे बाबू भ्रष्ट व्यवस्था के सबसे पुख्ता किले की तरह होते हैं। क्या हम कभी सोच सकते हैं कि ये वही बाबू हैं जो एक चाय के कप के साथ पूरे सिस्टम को ठंडा कर देने की कूवत रखते हैं और बिना हिले-डुले अपने डेस्क पर घंटों बैठे रहते हैं ? सालों से एक ही पटल पर बैठने वाले इन बाबुओं के पास न तो किसी काम को समयबद्ध करने की फुर्सत होती है, न ही किसी काम के लिए कोई योजना। इनकी ‘विशाल’ कार्यशैली का सबसे बड़ा मंत्र होता है कि “बिना माल के काम नहीं होता”। लगता है कि ऐसी ही कुछ व्यवस्था गोरखपुर विकास प्राधिकरण में पिछले 15 बीस सालों से जमे बाबुओं ने भी कायम कर रखी है । प्राधिकरण के वाद अनुभाग से लेकर मानचित्र अनुभाग में मनमानी और रिश्वतखोरी का आलम ऐसा है कि यहां अवैध निर्माणों को बचाने और बनवाने में ये बाबू लोग एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं । प्राधिकरण में सालों से जमे बाबूओं की रिश्वतखोरी की बानगी को इस शिकायती पत्र से समझा जा सकता है ।

इस शिकायती पत्र का मर्म यही है कि पादरी बाजार में हो रहे अवैध निर्माण की फाइल पर प्राधिकरण में लगभग पिछले 20 सालों से जमा बाबू अभय श्रीवास्तव, पिछले एक महीने से कुंडली मारकर बैठा है और उस फ़ाइल की नकल इसलिए जारी नही होने दे रहा ताकि मामला हाइकोर्ट तक न पहुँचे और हो रहा अवैध निर्माण बदस्तूर चलता रहे । शिकायतकर्ता का दावा है कि बाबू अभय श्रीवास्तव का यह कथन कि “अवैध निर्माणकर्ता से पूछने के बाद ही नकल जारी करेंगे” की रिकॉर्डिंग उनके पास है साथ ही प्राधिकरण में अपना नियम कानून चलाने की बात जो अभय श्रीवास्तव द्वारा कही गयी है वो बातें भी रिकॉर्ड की गई बातों का एक अहम हिस्सा है । उक्त कथन अपने आप मे एक ऐसा उदाहरण है जो यह बताता है कि अवैध निर्माण करनेवालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा यह बाबू उनलोगों के सहयोग का बिल्कुल भी इच्छुक नही है जो अवैध निर्माणों के खिलाफ खड़े हैं । फ़िलहाल अंगद का पैर बने इस बाबू के खिलाफ इस शिकायती पत्र को हाइकोर्ट में लगाने के साथ ही हो रहे अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार बाबू तथा कुछ अन्य जिम्मेदारों को भी पक्षकार बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है ।

अभय श्रीवास्तव जैसे सालों से एक ही पटल पर जमे बाबुओं को तो यही लगता है कि उनका ‘स्थायित्व’ ही उनके सत्ता के सर्वोच्च स्थान को प्रमाणित करता है। पूरे विभाग में घमंड से बैठे ये सरकारी बाबू खुद को कामकाजी संस्कृति का सबसे बड़ा संरक्षक मान बैठे हैं। अगर एक बाबू अपने पटल से हट जाए तो पूरा सिस्टम टूटने जैसा महसूस होता है और यही कारण है कि सालों से जमे इन बाबुओं का भ्रष्टाचार एक अलग स्तर पर पहुँचता चला जाता है.. जिसका मर्म सिर्फ ‘रुपये की मांग’ और ‘काम को टालना’ है। सही मायनों में देखा जाए तो लंबे समय तक जमे रहने वाले बाबू ही असल में भ्रष्टाचार की जड़ होते हैं, क्योंकि इन्हें अपने पद का ऐसा चस्का लग जाता है कि वो कभी भी अपनी जगह छोड़ने का नाम नहीं लेते । इन बाबुओं के कारण ही सिस्टम की असल गति रुक जाती है, और विकास की बजाय सिर्फ “रिश्वत का व्यवसाय” चलता रहता है।

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