क्या जनता, प्रशासनिक आदेशों को अपनी स्वतंत्रता पर हमला मान बैठी है ?

गोरखपुर : “बिना हेलमेट के पेट्रोल नहीं” जैसे प्रशासनिक आदेश को जनता द्वारा ठेंगा दिखाना एक दिलचस्प और व्यंग्यात्मक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करता है। यह विषय समाज की उस मानसिकता को उजागर करता है, जहाँ नियमों और आदेशों का पालन करने की बजाय उनका उल्लंघन करना एक आदत बन चुका है। गोरखपुर में नो हेलमेट नो पेट्रोल के प्रशासनिक आदेश जारी हैं । जब बिना हेलमेट के बाइक पर पेट्रोल नहीं मिलेगा, तो उसकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से बड़ी दिलचस्प होगी। पहला सवाल यही उठेगा कि, “हेलमेट पहनने से पेट्रोल का क्या लेना-देना ?” यह आदेश एक सख्त कदम तो हो सकता है, लेकिन क्या इसे अमल में लाना संभव है ? और अगर इसे लागू किया भी जाता है, तो क्या लोग इन नियमों का पालन करेंगे, या फिर प्रशासन अपनी ताकत दिखाने के लिए इस आदेश को भी एक और मजाक बनाकर रख देगा ? फिलहाल मजाक तो यही चल रहा है । गांव को छोड़िए यहां तो शहर के लगभग हर पेट्रोल टंकियों पर इस आदेश के अनुपालन की अर्थी सुबह शाम उठायी जा रही है ।

हमारे समाज में अक्सर ऐसे आदेशों को एक चुनौती के रूप में लिया जाता है। प्रशासन की तरफ से कोई भी सख्त कदम उठाया जाता है, तो उसकी आलोचना की जाती है, और उसकी ‘सामाजिक स्वीकार्यता’ को हम नजरअंदाज करते हैं। जनता की नज़र में प्रशासनिक आदेश एक प्रकार का ‘नया फैशन’ बन जाता है, जिसे वे अनदेखा करके अपने तरीके से जीने का प्रयास करते हैं।

अब गोरखपुर प्रशासन ने ये आदेश दिया है कि हेलमेट के बिना पेट्रोल नहीं मिलेगा, तो ऐसा आदेश कहीं न कहीं जनता को और भी आवारा और मनमजनू बना रहा है। यदि व्यंग्यात्मक लहजे में कहा जाए तो जनता समझ रही हैं कि ऐसे आदेशों से उनका हक छीनने की कोशिश की जा रही है, और वे इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला मान चुके हैं। परिणामस्वरूप, नियमों का पालन करने के बजाय लोग इस आदेश का मजाक उड़ा रहे हैं, और धड़ाके से “बिना हेलमेट के पेट्रोल” भरवा रहे हैं । यहाँ पर एक हास्यपूर्ण व्यंग्य यही है कि प्रशासन जितने सख्त आदेश देता है, उतनी ही चतुराई से जनता उन आदेशों को दरकिनार करने की राह ठीक उसी तरह निकाल लेती है जिस तरह सरकार के आदेशों का तोड़ प्रशासनिक मशीनरी निकालती रही है । शायद यह भी कहना सही होगा कि आदेशों का उल्लंघन अब एक राष्ट्रीय शगल बन चुका है, और हर नागरिक की जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी !

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