अख़बारी पत्रकारों ने शुरू की “वसूली की वेलकम कॉल”

कुशीनगर : आजकल मीडिया में एक अजीब सी ख़बरें आ रही हैं। अखबारी पत्रकारों का काम अब सिर्फ खबरों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी एक नई भूमिका सामने आई है — वसूली का व्यापार। जी हां, हम बात कर रहे हैं उन पत्रकारों की, जो खबरों के बजाय ‘रिपोर्टिंग फीस’ वसूलने में व्यस्त रहते हैं।

हाल ही में कुशीनगर सुकरौली के एक अस्पताल संचालक का मामला सामने आया, जहां पत्रकारों ने अस्पताल संचालक को वसूली की वेलकम कॉल की और पैसा मांग लिया । लेकिन अस्पताल संचालक भी बड़ा घाघ निकला.. उसने अख़बारी पत्रकारों की औकात का मोलभाव कर दिया । जब अस्पताल संचालक ने इन पत्रकारों से कहा, “आईये, दो-चार पांच सौ दे देंगे, इससे ज्यादा आपकी औकात नहीं है,” तो यह वाक्य न केवल इन पत्रकारों की सीमाओं का आदान-प्रदान कर रहा था, बल्कि यह भी दर्शाता था कि कुछ पत्रकार खुद को समाज की सबसे बड़ी ताकत मानने की भूल कर बैठे हैं।

सच तो यह है कि इन पत्रकारों का यह व्यवहार न केवल उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाता है, बल्कि पूरे पेशे की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है । अस्पताल संचालक ने बड़ी समझदारी से स्थिति को संभाला और इन पत्रकारों की औकात को उनके मुंह पर ही चिढ़ा दिया। इस पूरी घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सच और ईमानदारी नहीं रहा, तो उसकी ‘औकात’ कुछ भी नहीं रह जाती । अखबार मालिकों ने बगैर लेटर आई कार्ड के वसूलीबाजों की ऐसी खेप..क्षेत्र में प्रतिनिधि के नाम पर उतार रखी है जो निपट,जाहिल, अनपढ़ और धतूरे टाइप के लंठ लोग हैं । वसूली पत्रकारिता का हिस्सा बन चुकी है, और पत्रकारी धुरंधर लोग वसूली भाई बन चुके हैं ! या फिर यह सिर्फ कुछ लोगों का चतुराईपूर्ण खेल है जिसे विज्ञापन के नाम पर खुल कर खेला जा रहा है, लेकिन जब तक पत्रकारों के इस गलत रवैये को सुधारने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता, तब तक इनकी ‘औकात’ भी वही रहेगी, जो कुशीनगर के अस्पताल संचालक ने सही-सही पहचानी और बताई भी ।

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