“मेरे मन का मैल…”
सच तो सच करने के लिए दो लोगों की जरूरत पड़ती है……एक वो, जो सच को बोल सकता हो और दूसरा वो, जो सच को सुन सकता हो । नेताजी लोगों की तो मजबूरी है, क्योंकि यदि राजनीति करनी है तो मुंह मे शक्कर और सिर्फ पर बर्फ रख कर चलना बहुत जरूरी है । मगर आजकल ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं हैं जो मुँह में “बवासीर” लिए घूमते हैं ।
आज के हालात में अपना घर परिवार तो देखा नही जा रहा फिर देश में क्या चल रहा है ये देखने की फुरसत किसे है ? किसी को नौकरी नही मिल रही… तो किसी के पास पैसे नही है…महंगाई हद से अधिक बढ़ रही है..डॉलर 100 की ओर बढ़ रहा है.. गरीब और गरीब होता जा रहा है… जब तक रसोई में रोज दाल पकाने लायक हैसियत तक पहुँचते हैं तब तक साली दाल एक दहाई का आंकड़ा और फांद कर पार कर जाती है..किसानो को Msp नहीं मिल रही है.. विदेशों से “करिया” धन वापिस नही आ रहा है.. खाते में ब्याज क्या घण्टा आएगा, उल्टा हर साल मेंटेनेंस चार्ज अलग लुट जा रहा है…बुलेट ट्रेन की तो छोड़िये कमबख़्त आम ट्रेन ढंग से चल नही पा रही है । फिर भी ये मीडिया के चिंटू केंडी और फिल्मी दुनिया के चमचे हमे “औरंगज़ेब” दिखा कर आँख बंद करने को बोल रहे है ।
लोकतन्त्र का सबसे बड़ा प्रहरी मीडिया होता है l लेकिन भारत में आज मीडिया से ही लोकतन्त्र को सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है। जरा सा आईना दिखाओ, तो ससुरों का अहंकार घायल हो जाता है ।
रेल की घटनाओं पर रेलमंत्री रील बनाने में व्यस्त हैं…और इथेनॉल बूटेनॉल हाइड्रोजन और हीलियम की बातें करके सिर्फ टोल वसूली चल रही है । बोलना लिखना छोड़ो यहाँ तो हंसने पर भी मुकदमा हो जा रहा हैं..नेताओं के बच्चे ही विधायक सांसद बनते जा रहे हैं और धर्मात्मा टाइप के लोग आत्महत्या कर ले रहे हैं । गाली देने वाले मुख्यमंत्री बन जा रहे हैं …और पेपर लीक कराने वाले नौकरी पा जा रहे हैं ..95 प्रतिशत नंबर पाने वाले धक्के खा रहे हैं.. और अस्सी प्रतिशत नम्बर पाने वाले अधिकारी बन जा रहे हैं । पढ़े लिखे बेरोजगार घूम रहे हैं.. और सड़कों पर लाठी व मुकदमे खा रहे हैं । भ्रष्टाचारी लोग पार्टी ज्वाइन करते ही दोषमुक्त हो जा रहे हैं…और बाबा पैस्टर ओझा तांत्रिक रोगों का इलाज कर रहे हैं । डेढ़ आंख का आदमी स्वदेशी के नाम पर हमारी माया और काया सब लूट ले जा रहा है …और देश का चौथा स्तंभ गुलामी और दलाली में व्यस्त है । बस सांसों पर टैक्स लगना बाकी है..और हमारा वोट लेने वाले नेता और मीडियाई भांड इसे अमृत काल बता रहे हैं । ख़ैर, किसी की कोई गलती नही.. क्योंकि भांड मीडिया को छोड़कर सभी वही काम कर रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए । बस भांड मीडिया अपना वो काम नही कर रही जो उसे करना चाहिए !
हमारे शरीर मे दो तरह की चीजें होती हैं एक न्यूरॉन और दूसरा नेफ्रॉन ! न्यूरॉन होता है ब्रेन में… और नेफ्रॉन मूत्र में ! लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे मीडिया के ब्रेन में न्यूरॉन की जगह नेफ्रॉन भर गया है क्योंकि अब मीडिया अपने कुतर्क के सहारे गटर छाप पत्रकारिता पर उतर आई है ।
(आत्म अभिव्यक्ति पर आधारित …..)