ऊपर दिखाई दे रही तस्वीर वर्तमान समय की पत्रकारिता की सच्चाई को उजागर करता है । तस्वीर बताती है कि बेखौफ पत्रकारिता का रास्ता बिल्कुल ब्लेड की धार जैसा है । इस रास्ते में आगे बढ़े तो कटना तय है, पीछे हटे तो भी कटना तय है और यदि चुपचाप वहीं खड़े रहे तो भी कटना तय है ।
जिस तरह से सीतापुर, दैनिक जागरण के पत्रकार राघवेंद्र की हत्या को अंजाम दिया गया, उसमें कुछ भी नया नही है ,बस हत्या करने का तरीका अलग है । कुछ दिन पहले इसी तरह की घटना छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर के साथ हुई थी । मीडिया के चौथे स्तंभ को गहरे घाव देने का प्रयास अब केवल एक व्यक्ति या एक समूह तक सीमित नहीं है, बल्कि नौकरशाह से लेकर राजनेता,अपराधी और व्यवसायी सभी की नजरों मे आज ईमानदार और बेख़ौफ़ पत्रकार बुरी तरह खटक चुका है । एक तरफ सरकारें ‘विकास’ और भ्रष्टाचार रहित सिस्टम के झूठे दावे करती हैं, और वहीं दूसरी तरफ उन पत्रकारों को खामोश किया जा रहा है, जो उन दावों के पीछे की हक़ीक़त को उजागर करते हैं
अपने आपको सर्वशक्तिमान समझने वाला भ्रष्ट सिस्टम यदि वाकई में अपने आपको शक्तिशाली समझता है, तो फिर ईमानदार पत्रकारों से इतना डरने की जरूरत ही क्या है कि उसे खामोश करने के लिए अपनी संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग करना पड़े या फिर उसकी हत्या करानी पड़े ! आज के समय का यह अकाट्य सत्य है कि बुरी तरह सड़ चुका यह भ्रष्ट सिस्टम अपनी असफलताओं और ग़लतियों को उजागर करने वाले पत्रकारों से डरता हैं । कोई बता सकता है कि सीतापुर में दैनिक जागरण के पत्रकार राघवेंद्र वाजपेयी की हत्या से सरकार में कोई हलचल हुई है क्या ? किसी मंत्री या राजनैतिक पार्टी को कोई फर्क पड़ा है क्या ? किसी मंत्री,संतरी,विधायक ने अभी तक मरहूम पत्रकार के परिवार के लिए कोई आर्थिक मदद की घोषणा की है क्या ?
आज दैनिक जागरण जैसा अख़बार अपने पत्रकार की हत्या की ख़बर को जिस तरह से जमकर छाप रहा है, वो काबिल ए तारीफ़ है । इतनी खबरें छपने के बाद, ऐसा तो हो ही नही सकता कि किसी सत्ता,नेता या राजनैतिक पार्टी को इस हत्याकांड की खबर पता न चली हो । लेकिन पता चलने के बाद भी इस मशीनरी की संवेदनहीनता में कोई फर्क पड़ा है क्या ? नही पड़ेगा…क्योंकि सिस्टम और सत्ता का अंडकोश चाटने वाले पत्रकारों ने ही चंद बेखौफ पत्रकारिता करने वालों के लिए ऐसी नियती का निर्धारण खुद अपने हाथों से किया है । पूरे देश और यूपी की क्या बात करूं, क्योंकि जब नजरें उठाता हूँ, तो मुझे सबसे ज्यादा निर्लज्ज, रीढ़विहीन, चाटुकार और खुदगर्ज गोरखपुर का मीडिया जगत दिखाई देता है । गांवों कस्बों तक में मरहूम मुकेश चंद्राकर और राघवेंद्र जैसे पत्रकारों के लिए मशालें जल जाती हैं.. लेकिन ऐसा लगता है जैसे गोरखपुर शहर के मीडिया जगत ने अपनी मशालों को सर्वदा के लिए अपने ही मूत्र में विसर्जित कर दिया है ।
संवेदनहीन और निरंकुश हो चुकी मशीनरी को किसी राघवेंद्र वाजपेयी की हत्या से क्या फ़र्क़ पड़ता है ? सच्चा पत्रकार मारा गया है, कोई दलाल,भांड,अंडकोष चूमने और मुजरा करने वाला पत्तलकार नहीं …इसलिए कोई पत्ता नही हिलेगा,कोई फर्क नही पड़ेगा । जिस दौर में इंसाफ़ भी विशेष पहचान की खूँटी पर किसी अंधे क़ानून की तरह लटका हुआ है, उस दौर में शायद राघवेंद्र वाजपेयी की सबसे बड़ी गलती यही थी कि वह कलमकार राघवेंद्र वाजपेयी था… अपना स्वाभिमान बेचकर सिस्टम का अंडकोष चूमने वाला दलाल,भांड या चाटुकार नही ! मरहूम पत्रकार राघवेंद्र को सिस्टम वेबसाइट मीडिया की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि …