दैनिक अखबार के पत्रकार “खबीस पांडेय” का रक्तचाप बढ़ा…खबर में अपनी फोटो देख सुलग गए !

गोरखपुर : खबर है कि एक चर्चित न्यूज़ वेबसाइट की पत्रिका में अपने कर्मकांडों और कारनामों की फोटो सहित छपी खबर को देखकर दैनिक अखबार गोरखपुर के खबीस पांडे जी अचानक अपने पायजामे से बाहर हो गए । पांडेय जी के कर्मकांड को अधिकारी न जानने पाएं इसलिए पहले तो पांडेय जी के इशारे पर एक दरोगा जी ने न्यूज़ वेबसाइट पत्रिका के सम्पादक को एसएसपी साहब के चैम्बर में जाने से ही रोक दिया लेकिन सम्पादक महोदय जैसे तैसे अंदर पहुँच ही गए । बाहर निकलने पर पांडेय जी ने सम्पादक महोदय को धमकाते हुए अपने खिलाफ छपी खबर के सापेक्ष उनसे सबूत मांगना शुरू कर दिया

अरे पांडेय जी, अगर सबूत ही चाहिए तो कोर्ट आईये न ! क्या बगैर सबूत के ही आपके खिलाफ कोर्ट में मामला दर्ज हो गया है । फिर अभी से काहे फड़फड़ा रहे हैं…अरे अभी तो शुरुआत है…अभी आपकी उमर ही क्या है ? अभी तो आपको बहुत कुछ देखना बाकी है । वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि जिस चर्चित न्यूज़ साइट पर चली या छपी हुई खबर से आप बौखलाए हुए हैं उस न्यूज़ साइट पर ऐसी कोई खबर नही छपती,जिसके सापेक्ष सबूत मौजूद न हो । वैसे एक बात आपकी जानकारी में और डाल देना चाहता हूँ खबीस पांडेय जी, कि आपने गलत संपादक को धमका दिया । अपना कलेजा थोड़ा और बड़ा कीजिये और उस सम्पादक को धमकाईये जिसकी कलम से ये सारी खबरें निकली हैं, क्योंकि आपके अखबार की तरह इस न्यूज़ वेबसाइट में भी कई सम्पादक मौजूद हैं ।

सम्पादक को धमकाने की आपकी इस ओछी और नीच हरकत के बाद बहुत से लोग पूछ रहे हैं कि ऐसा कैसे हो गया ? तो उनलोगों को यह बता दूँ कि ऐसा तब होता है, जब पत्रकार से दलाल बनने के लिए पांडेय जी जैसे लोग अपनी रीढ़ की हड्डी को गोबर में पीस कर उसका लेप अपने मुंह पर पोत लेते हैं… ऐसा तब भी होता है, जब पांडेय जी जैसे पत्रकार सिस्टम के दलाल तंत्र में तब्दील हो जाए…और ऐसा तब भी होता है, जब बुद्धिजीवी लोग तार्किकता को तिरोहित कर खुद अपना पिंडदान कर दें ।

सुनो पांडेय जी मैंने पहले भी कहा था कि शरीर मे दो चीजें होती हैं । एक न्यूरॉन और दूसरा नेफ्रॉन ! न्यूरॉन होता है ब्रेन में और नेफ्रॉन होता है मूत्र में ! आज आपकी हरकत बता रही है कि अब आपके ब्रेन में न्यूरॉन के जगह नेफ्रॉन भर गया है और यही वजह है कि आप गटर छाप पत्रकार में तब्दील हो चुके हैं । खुद की तस्वीर सबूतों के साथ छपी देखकर आप विधवा विलाप करने लगे तथा दूसरों की तस्वीर बगैर सबूत के सूत्रों तथा मूत्रों के हवाले से छापने में आज तक आपको बड़ा मजा आ रहा था । आपका वजूद तो बुद्धत्व के सिद्ध वचन “बुद्धं शरणं गच्छामि” से बदलकर “दलालम शरणं गच्छामि” हो चुका है । किसी की हड्डियां तोड़ने में वो मजा नही है पांडेय जी, जितना उसका अहंकार तोड़ने में है । मैं जानता हूँ पांडे जी कि आप लहसुन प्याज छूते तक नहीं, लेकिन हराम की कमाई बिना पानी के ही निगल जाते हैं ।

पांडेय जी, आज यह जान लीजिए कि डिक्टेटर्शिप्स अचानक ही गिरती हैं । अक्सर एक डिक्टेटर को पता ही नहीं चलता कि उसके आसपास क्या चल रहा है, क्योंकि वो चाटुकारों और दलालों से पूरी तरह घिरा होता है । ऐसे चाटुकार जो सिर्फ उसकी तारीफ़ करते रहते हैं । इसी वजह से वह एक के बाद एक बेवक़ूफ़ी भरे निर्णय लेता चला जाता है और इसी मूर्खता को ‘डिक्टेटर्स डाइलेमा’ कहते हैं ।

मैं यह भी जानता हूँ कि आपका दिल वेश्याओं के दुप्पटे की तरह हो चला है पांडेय जी । सुना है कि “सुराख ए जन्नत की मल्लिकाओं” को देखते ही आप खीसें निपोरने लग जाते हैं । ऊपर वाला आपको आशीष दे पांडेय जी, कि चूसन क्रिया में आप नित नई ऊंचाइयों को छुएं और अंडकोष चूमने की विध्वंसक और हाड़तोड़ प्रतियोगिता में आप गोल्ड मेडलिस्ट विजेता बने ।

यदि आपने पत्रकारिता के आदर्शों को तिलांजलि देते हुए आज एक संपादक को एसएसपी के प्रांगण में धमकाने जैसी निकृष्टता और धृष्टता नही की होती पांडेय जी, तो आज ऐसा व्यंग्यात्मक पोस्ट मुझे नही लिखना पड़ता । ये मानता हूँ कि आप एक टॉप क्लास के बड़े दलाल अखबार के पत्रकार हैं…और यदि मात्र इसी वजह से आप नियम कानून को अपने अब्बाजान की जागीर समझने की भूल कर बैठे हैं… तो यह आपके विकट तथा अखंड चादरमोद होने का ज्वलंत प्रमाण है । मुकदमे की धमकी सम्पादक को मत दीजिये पांडेय जी ! आप स्वतंत्र हैं और यदि आपको लगता है कि आपके मान सम्मान (जो कि है ही नही) को ठेंस पहुंची है तो नियमतः कोर्ट से मानहानि का मुकदमा कीजिये । और  रही हमारी बात तो हमारे परदादा से लेकर बाप तक फौज में रहे हैं पांडेय जी…..एकदम शुद्ध खुद्दार और देशभक्त ! कोई आजाद हिंद फौज में रहा, तो कोई भारतीय फौज में । इसलिए हमने उनसे सीखा है कि जिंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा ? अगर जंग लाजिमी है तो लश्कर नही देखे जाते पांडेय जी ! बाकी आपका केकड़ा सम्प्रदाय अपनी मतरिया बहिनिया कराता रहे, मुझे उससे क्या फर्क  पड़ता है..? हमारा जन्म ऐसे खानदान में हुआ है पांडेय जी, जहां मरने की अनुमति है, लेकिन डरने की नही ! खासकर दलाल,भांड और भ्रष्टचारियों से तो बिल्कुल भी नहीं !

सूचना : (सिस्टम का सच) पत्रिका जिस जनता जनार्दन तक अभी नही पहुँची है उन लोगों की खिदमत में उसका पीडीएफ पेश है । नीचे क्लिक करें और पीडीएफ देखें ।

Pdf System Ka Sach-Jan-25 final

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