पूरे देश ने देखा कि फायर डिपार्टमेंट वाले गए थे जज साहब के घर आग बुझाने… और पूरे देश मे ऐसी आग लगा आये जिसके ठंढे होने के आसार फ़िलहाल तो दिखाई नही पड़ रहे हैं । दलाली की चाशनी में लिपटे अख़बारी पत्रकारों की भावनाएं जितनी आहत हमारी खबरों से होती है, उतनी अगर देश में फैले आकंठ भ्रष्टाचार ,पेपर लीक, मिसयूज ऑफ पावर से होती.. तो आज भारतीय मीडीया पर लोग खखार-खखार कर थूक नही रहे होते । लाख बुराईयां थी रावण में, लेकिन सोने की लंका जल जाने के बाद भी उतना कैश बरामद नही हुआ था जितना मीलार्ड के घर से हुआ है ।
लूट का एक पूरा तंत्र होता है । एक ऐसा तंत्र.. जिसकी नो एंट्री को भेदना किसी ईमानदार अधिकारी के लिए संभव नही हो पाता । भ्रष्टाचार और लूटतंत्र की अराजकता में बराबर के हिस्सेदार बन चुके गोरखपुर के अख़बारी जगत का विद्रूप और घिनौना चेहरा फिर से एक बार सामने आया है । लगभग सभी जानते हैं कि जिला अस्पताल गोरखपुर में व्याप्त आकंठ भ्रष्टाचार की बैतरणी में गोते लगाने वाले राजेन्द्र कुमार तथा वीबी सिंह पर भ्रष्टाचार के प्रथम दृष्टया आरोप साबित हो चुके हैं तथा शेष चौधरी से लेकर डॉक्टर सुमन तक सभी कई तरह की जांचों की रडार पर हैं । जिला अस्पताल के आकंठ भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधे रहने वाला “हिंदुस्तान अखबार” उस वक्त मैय्यत के गम डूबा हुआ था जब जिला अस्पताल के भ्रष्टचारियों के कारनामे दनादन खुलकर बाहर आ रहे थे । इन भ्रष्टचारियों के काले कारनामो की एक भी खबर शायद ही “हिंदुस्तान अखबार” में कभी छपी हो, लेकिन जब बात बेहयाई तथा बेशर्मी की आती है तो “हिंदुस्तान अखबार” हमेशा लाइन में आगे खड़ा दिखाई देता है । शायद इसीलिए “हिंदुस्तान अखबार” ने गोरखपुर के फर्जी “प्रोविधिज्ञ संघ” के चुनाव की ख़बर (फोटो सहित) अपने अखबार में छापी है ।
क्या हिंदुस्तान अखबार यह नही पता कि जिस “प्रोविधिज्ञ संघ” के चुनाव का निर्वाचन अधिकारी बनकर भ्रष्ट राजेन्द्र कुमार शपथ दिला रहा है… वो “प्रोविधिज्ञ संघ” पूरी तरह से फर्जी और अस्तित्वहीन है और इस फर्जी संघ को शासन से मान्यता ही प्राप्त नहीं है । यदि पता है तो शासन से फर्जी करार दिए जा चुके इस संघ और इस संघ के नटवरलालों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम की खबर छापकर उनका महिमामंडन करने की आखिर कौन सी मजबूरी थी ? जब तुम्हारा जमीर और आत्मसम्मान पूरी तरह मर ही चुका है और जब घुंघरू सेठ के सामने मुन्नी बाई बनकर नाचना ही तुम्हारी नीयती बन चुकी है…तब इतने महान नाम “हिंदुस्तान” को कम से कम तो बख़्श ही दो और अपने अखबार का नाम “बिकाऊस्तान” रख दो । यकीन मानो, मेरी तरफ से यह सलाह तुम्हारे लिए बिल्कुल मुफ्त और पूरी तरह टैक्स फ्री है ।
इन बड़े अख़बरियों की दलाली को देखकर मैं मंझोले और छोटे पत्रकारों से कहना चाहता हूँ कि तुमलोग भी अब कलम से खूब पेल कर लिखो…अंड बंड संड लिखो ..अंट शंट लिखो… पत्रकारिता का छप्पड़ फाड़ दो….दलाली के इस नेटवर्क में अपना अधिकार अपनी जगह मांगो….फिर सेटिंग करके खूब दलाली करो… दूह डालो सबको… जुगाड़ करके खूब माल काटो… बेहिसाब रुपया कमाओ.. SUV लो… फिर गनर ही नहीं बाउंसर के साथ भी चलो… नेता बनो…. ब्लैक लेवल से ऊपर उठकर ब्लू लेवल… फिर जानी वाकर तक पहुंचो… हजार पांच सौ के लिए बदनामी और जान देना बिल्कुल भी ठीक नहीं…इसलिए अपना रेट बढ़ाओ और बीच मे जो भी बड़का टाइप का पत्रकार रुकावट बनने की कोशिश करे, उसका सीधा “सेवा में श्रीमान” कर दो । छोड़ो सब, जो जैसा चल रहा है चलने दो…तुम लोकतंत्र के चौथे खंभे हो…इसलिए एक खम्भे से नीचे के कोम्प्रोमाइज़ को “तौहीन ए पत्रकारिता” समझो…खम्भा भी ऐसा चुनो जिसकी औकात पांच हजार से नीचे न हो…याद रखो कि पहले लोग मर जाते थे और उनकी आत्मा भटकती थी लेकिन आज आत्मा मर चुकी है और लोग भटक रहे हैं ।