“सिस्टम का सच” की पहली वर्षगांठ पर काटे गए केक..बधाईयों की बौछार !

गोरखपुर : जनपक्षधर पत्रकारिता के समर्थकों को “सिस्टम का सच” के पहली वर्षगांठ की हार्दिक बधाई !

“जब पत्रकारिता बिकने लगी, और लोकतंत्र के खंभे दरकने लगे…. जब विधायिका,कार्यपालिका अपने निम्न स्तर पर पहुँच गयी और न्यायपालिका भी जब सवालों के कटघरे में खड़ी होने लगी… तब “सिस्टम का सच” ने खरी-खरी कहनी शुरू कर दी !”

मीडिया की चकाचौंध में जब कुछ पत्रकार नोटों की गद्दी पर ‘सत्य’ का गला घोंट उसे मौत की नींद सुलाने में लगे थे , तब कहीं कोने में एक ‘सनक’ अंगड़ाईयाँ ले रही थी । जब कुछ चैनल TRP की पूजा में लीन थे, और कुछ संपादक न्यूज़ रूम में नहीं, बल्कि ड्रॉइंग रूम में बैठकर पावर पॉइंट प्रेज़ेंटेशन में नैतिकता का स्लाइड शो चला रहे थे । तभी आया “सिस्टम का सच” — न कोई मेकअप, न कोई प्रायोजक । एक ऐसा मुँहफट दोस्त जो कहे, “अबे ये पत्रकारिता नहीं, दलाली हैं …और जहाँ ये बैठा है वो स्टूडियो नहीं बल्कि,दलाली का चबूतरा है।”

जब “सिस्टम” ने प्रेस रिलीज़ को प्रेस की रग का रोग बताते हुए रिपोर्ट छाप दी !

जब ज्यादातर पत्रकार ‘दलाली की गोद’ में बैठे थे, तब “सिस्टम” ने ‘कुर्सी’ खींच ली — वो भी बिना अनुमति के । जहाँ बाकी लोग “Exclusive” के नाम पर विज्ञापन परोसते थे, वहाँ “सिस्टम” ने Exclusive के नाम पर ‘एक्सपोज़’ करना शुरू कर दिया।

आज “सिस्टम” दरअसल मीडिया की वो खाँसी बन चुका है जिसे बाकी पत्रकार दबाना चाहते हैं — पर जब यह निकलती है, तो सीधा फेफड़े खोल देती है, क्योंकि अब यह खांसी लाइलाज दमा बन चुकी है और इसे दबाया नही जा सकता !

“जब भेड़ की खाल में भौंकने लगे भौंकिसुर”

एक दौर था जब पत्रकार ख़बरें ढूंढते थे, लेकिन अब ‘डील’ ढूंढते हैं। न्यूज़ रूम अब ‘रूम सर्विस’ बन गया है — जहाँ आका जो ऑर्डर दे, वही परोसा जाता है। और जो पत्रकार सवाल पूछने की ज़िद करता है, उसे “विचलित तत्व” घोषित कर दिया जाता है — जैसे सवाल पूछकर और एक्सपोज़ कर वह देश की GDP में भयंकर गिरावट ला रहा हो । लेकिन “सिस्टम” को न टीआरपी की फिक्र है, न विज्ञापनदाता के मूड की । वो तो जैसे कहता है, “कि सवाल पूछना और एक्सपोज़ करना अगर गुनाह है, तो हाँ साहब, हम गुनहगार हैं !”

“सिस्टम” के काम ऐसे ही हैं जैसे किसी ‘न्यूज़ चैनल’ के पीछे छुपे ‘रियल एस्टेट डीलर’ को लाइव पकड़ लिया गया हो । वहाँ ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ नहीं, बल्कि ‘ब्रेकिंग इमेज’ होती है — वो छवि, जो इन दलालों ने झूठ के मेकअप से गढ़ी होती है ।

आजकल न्यूज़ एंकर वो कलाकार हैं जो ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ को ‘ब्रेकिंग ड्रामा’ में बदलने की अद्भुत क्षमता रखते हैं । उनके चेहरे पर गुस्सा नहीं, ‘प्राइम टाइम की स्क्रिप्ट’ होती है । लेकिन “सिस्टम” की  तो सिर्फ एक ही स्क्रिप्ट है — “तेरी कहके लूंगा !”

इन दलालों का सारा गुस्सा सिर्फ एक्सपोज़ करने वालों के लिए आरक्षित होता है, और सारी मुस्कान दलाली के चरणों में लहालोट होकर बिछी रहती है। कोई कभी इनसे पूछ ले कि “आप पत्रकार हैं या प्रवक्ता ?” तो जवाब मिलेगा, “देश को खतरा है, और हम चौकीदारी कर रहे हैं !” (चौकीदारी, पर किसकी ?)

“सिस्टम” ऐसे पत्रकार रूपी दलालों को देखकर मुस्कुराता नहीं, बल्कि खांसता है — जोर की खाँसी, वो भी कड़वी । और कहता है, “ये न्यूज नहीं, नौटंकी है… ये पत्रकारिता नहीं, पेटकारिता है।”

“सिस्टम” के इस काम को अब ऐसा पागलपन घोषित किया जा चुका है, जो सिस्टम की दीवारों पर सच की खरोंचें करता फिरता है । और बाकी पत्रकारिता हँसती है — उस बनावटी ठहाके के साथ जो हर महीने की सैलरी स्लिप से दलाली की कहानी लिए निकलती है…और सैलरी न मिले तो दलाली के गुल्लक पर सवार होकर सरपट दौड़ जाती है ।

“सिस्टम का सच” ने अपनी जिद से अब ऐसे कई “सिस्टम” खड़े कर दिए हैं जो सवाल पूछते हैं…आंख मिलाकर बात करते हैं… “दलालों भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एलान ए जंग” करते हैं…क्योंकि जब दलाली से जंग लाजिमी हो जाए तो फिर लश्कर नहीं देखे जाते ! “सिस्टम की कालिख भरी स्याही” से… उम्मीदों की रोशनी जगाने वाले मुँहफट “सिस्टम के सच” को पहली वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं !

साभार : विक्रम सिंह राजपूत (विधि विशेषज्ञ)

पहली वर्षगांठ पर कुछ जगहों से सेलिब्रेशन के आये हुए वीडियो देखें ।

By systemkasach

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