गोरखपुर : दो दिन पहले अपनी खबर पर हमने दिखाया था कि एक सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर ने अपने दूसरे साथी को राहगीर बताकर बाइट ली और उसे ख़बर का रूप देते हुए सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया । यदि आप पत्रकार हैं तो आपको यह जानना जरूरी है कि इस बारे में कानून क्या कहता हैं ? उक्त मामला सीधे सीधे “इथिकल वायलेशन” का है जिसे पत्रकारिता के क्षेत्र में गंभीर अतिचार माना गया है । प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक यह ‘फेक और फेब्रिकेटेड न्यूज़’ मानी जाएगी तथा इसे कानून की भाषा में “फेक रिपोर्टिंग”, “फर्जी प्रमाण या स्रोत प्रस्तुत करना” और “मिसलीडिंग या डिलिबरेट डिसइनफॉर्मेशन” से जोड़ा जाएगा ।
कार्यवाही क्या हो सकती है ?
इसकी शिकायत पीसीआई को दी जा सकती है तथा “न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) और ब्राडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट कॉउंसिल (BCCC)” जैसे निकाय इसे मिस रिप्रेजेंटेशन मानकर जुर्माना या पब्लिक माफीनामा जारी करने का आदेश दे सकते हैं । कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट,1978 भी इसपर लागू होते हैं,अगर मीडिया संगठन जानबूझकर ‘मिसलीडिंग या ‘पेड न्यूज’ करता है तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है ।
ये तो बात तो मिसलीडिंग कंटेंट से जुड़ी खबरों और उससे जुड़े कानून से सम्बंधित है लेकिन अब हम आपको वो पोस्ट और उस पोस्ट पर किये गए कमैंट्स के वो स्क्रीन शॉट्स दिखा रहे हैं जो फेसबुक पर किये गए हैं । पोस्ट करने वाले गोरखपुर के कथित पत्रकार तथा उनसे जुड़े कुछ विशेष लोग बताए जा रहे हैं । जिस भाषा का इस्तेमाल इस पोस्ट तथा कमैंट्स में किया गया है, वह भाषा लोकतंत्र के चौथे खम्भे के उस विखंडित विद्रूप और घिनौने चेहरे को उजागर करती है जो सिर्फ और सिर्फ घृणा के पात्र है । इनकी हरकत स्पष्ट तौर पर कानून को दी जा रही वो प्रत्यक्ष चुनौती है जो सीधे सीधे गाली गलौज, धमकी तथा आईटी एक्ट के दायरे में आती है ।
सबसे पहले किसी सुभाष गुप्ता नाम की फेसबुक आईडी से किये गए इस पोस्ट को देखें !
अब इस पोस्ट पर किसी जफर खान नाम के फेसबुक पेज से की गयी प्रतिक्रिया देखें !
इस कमेंट में इस्तेमाल किये गए शब्द “ऑर्थोपेडिक इलाज” को हड्डियाँ तोड़ने जैसे अर्थ से जोड़ कर देखा जा सकता है !
अब इसी पोस्ट पर किसी फैय्याज अहमद नाम के फेसबुक पेज से दी गई प्रतिक्रिया देखें !
इसी फेसबुक पेज पर किसी शाकम्भ त्रिपाठी नाम के फेसबुक पेज की प्रतिक्रिया देखें !
इसी पोस्ट पर किसी सईद साहब अहमद नाम के फेसबुक पेज की प्रतिक्रिया को भी देखें !
मुद्दा : उपरोक्त संदर्भ से जुड़े कानून क्या कहते हैं ?
उपरोक्त जैसे मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि सिर्फ व्यक्तिगत अपमान या गाली अगर “किसी खास व्यक्ति/समूह को लक्षित करता है, तो IPC की धाराएँ (जैसे 504, 505, 506) लागू हो सकती हैं” । आप ये कह सकते हैं कि फेसबुक पोस्ट में गाली-गलौज हुई है पर किसी का सीधा नाम नहीं लिखा था । लेकिन यदि पीड़ित पक्ष के संदर्भ से यह तर्क रखा जाता है कि पोस्ट उसी पर लक्षित थी तो कार्यवाही तय है… क्योंकि कोर्ट ने माना है कि इनडाइरेक्ट पहचान भी पर्याप्त है, अगर उससे गाली गलौज या मानहानि की संभावना हो ।
तात्पर्य यह है कि नाम जरूरी नहीं — पहचान का तात्पर्य संदर्भ अथवा तर्क से निकलता है !
सोशल मीडिया पोस्ट, सार्वजनिक तौर पर सबको प्रभावित करती है और यदि उसमें ऐसे विषय वस्तु शामिल हैं जो जिन्हें कानून की भाषा मे गाली या धमकी बताया गया है तो कार्यवाही के लिए स्पष्ट नाम का नही लिए जाने को आधार नही बनाया जा सकता । इसलिए ऐसे मामलों में IPC की धाराएँ 504, 505(2), 506, और आईटी एक्ट की धाराओं के तहत कार्यवाही की जा सकती है
संक्षेप में सबक….
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले ऐसे सभी गलीज़ अक्सर अधिकारियों के साथ सेल्फी लेकर उन सेल्फियों का इस्तेमाल ठगी तंत्र में करते हैं । अब जैसा कि ये वीभत्स और विद्रूप चेहरे अब सामने आ चुके हैं… तो क्या इसका फर्क उन अधिकारियों की छवि पर नही पड़ेगा जिनकी तस्वीर इन विद्रूप और वीभत्स चेहरों के साथ फिजाओं में तैरेगी । बहरहाल, इस बार भी मीडिया पर रायता फैलाने वाले “लहकटों” के बच निकलने की सभी संभावनायें खारिज़ हो चुकी हैं ।