“धारा 228A और दैनिक जागरण की हेडलाइन : पीड़िता की पहचान का खेल”

गोरखपुर : गोरखपुर में दैनिक जागरण के एक पत्रकार ने छेड़खानी की पीड़िता का नाम अखबार में प्रकाशित कर दिया। खबर का मकसद चाहे समाज को सच दिखाना भले रहा हो, लेकिन सवाल यही है—क्या पत्रकारिता की चमक के आगे कानून की मर्यादा फीकी पड़ सकती है ? आजकल कुछ मीडिया हाउसों के लिए खबर का मतलब सिर्फ ‘सिटी की चमक’ और ‘क्लिकबेट’ बन गया है। पीड़िता की पहचान उजागर करना-जिससे उसका जीवन और मानसिक संतुलन खतरे में पड़ता है । यह सिर्फ संवेदनहीनता नहीं, बल्कि कानून का उल्लंघन भी है ।

भारतीय दंड संहिता की धारा 228A स्पष्ट रूप से कहती है कि यौन अपराध की पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करना अपराध है । इसका उद्देश्य पीड़िता की निजी जिंदगी और गरिमा की रक्षा करना है । ऐसे में पत्रकारिता का यह कृत्य न केवल नैतिक दृष्टि से गलत है, बल्कि कानूनी दृष्टि से भी सख्त रूप से दंडनीय है ।

अदालतों ने बार-बार निर्देश दिए हैं कि यौन अपराध की खबर में पीड़िता के नाम, पता या पहचान के किसी भी संकेत को प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए । यह सिर्फ कानून का पालन नहीं, बल्कि समाज और न्याय के प्रति जिम्मेदारी भी है । लेकिन गोरखपुर की इस घटना में, जिस ‘पत्रकार’ ने पीड़िता का नाम प्रकाशित किया, उसने यह संदेश दिया कि कुछ मामलों में ‘अखबार की चमक’ कानूनी मर्यादा की अनदेखी’ बन सकती है।

अगर खबरों को छापने और दिखाने में कानून को दरकिनार किया जाता है, तो न्यायपालिका के पास कार्रवाई के विकल्प है । जिनमें नोटिस, जुर्माना और रिपोर्टिंग पर रोक तक शामिल हैं ।

गोरखपुर की यह घटना हमें याद दिलाती है कि जब अखबार की पत्रकारिता का अहंकार माथे पर सवार होता है तो अहंकार के समूल नाश की राह खुद बखुद खुल जाती है ।

By systemkasach

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का खुद का चेहरा कितना विद्रूप और घिनौना है..ये आप इस पेज पर देख और समझ सकते हैं । एक ऐसा पेज, जो समाज को आईना दिखाने वाले "लोकतंत्र के चौथे स्तंभ" को ही आइना दिखाता है । दूसरों की फर्जी ख़बर छापने वाले यहाँ खुद ख़बर बन जाते हैं ।

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