मैं फ़र्ज़ी न्यूज़ दिखाता हूँ…
मैं सच को झूठ बनाता हूँ…
अपराधी का साथ निभाता हूँ…
बिन वेतन खर्च चलाता हूँ…
मैं पब्लिक को उकसाता हूँ…
मैं सब धर्मों को लड़ाता हूँ…
है रूपिया ही मेरी पहचान…
मिले जितना चाहे अपमान…
गिरगिट भी देख मुझे परेशान…
बताओ क्या कहलाता हूँ ?
मैं पेटकार हूँ….पेटकार हूँ….पेटकार हूँ !
क्या था खुलासा…..?
सिस्टम वेबसाइट मीडिया के एक और खुलासे पर आज फिर से मुहर लग गई है… लेकिन अफसोस, कि इतने ढेर सारे सटीक खुलासों के बाद भी आज तक सिस्टम की तरफ से मुझे अपनी इंटेलीजेंस टीम में शामिल करने का न्योता नही मिला । सबूतों सहित किये गए खुलासे में दिखाया गया था कि एक आदतन अपराधी से दरगाह के मुतवल्ली तक सफर तय करने वाले इकरार अहमद ने कुछ कथित पत्रकारों को अपनी “इमेज पॉलिशिंग” में लगा रखा है । “इमेज पॉलिशिंग” में लगे इन कथित पत्रकारों ने प्रेस क्लब पदाधिकारियों से लेकर पुलिस अधिकारियों तक को गुमराह किया और उनके गाड़ी की स्टेयरिंग “दरगाह” की तरफ मोड़ दी । चंद बोटियों के लिए सिर्फ ईमान ही नही बेचा गया बल्कि तोड़फोड़, मारपीट से लेकर हत्या और गुंडा एक्ट जैसे कीमती आभूषणों से लदे एक “आदतन और पेशेवर अपराधी” के महिमा मंडन के लिए जीभ से जूते चमकाने की नई परम्परा ईजाद कर दी गई । ईमान और इंसानियत यहाँ तक गिर गई की गद्दी हथियाने और अपने विरोधियों को निपटाने के लिए अपनी “गुप्त महिला ब्रिगेड” को भी “जंग ए जलालत” के मैदान में उतार दिया गया ।
मुतवल्ली मेहरबान..तो पेटकार बना पहलवान….

“मा बदौलत” इकरार अहमद साहब का करिश्मा देखिए ! पुलिस की चौखट और अदालत के कटघरे से सीधे दरगाह के चौखट तक का सफर तय किया और रास्ते में मिलने वाली पत्रकारिता की पूरी बिरादरी को भी अपने ‘तसव्वुर’ में समेट लिया । जनाब की “सियार सेना” भी कोई मामूली नहीं है ! जब खुलासा हुआ तो बेईमानी और दलाली की कीचड़ में रेंगने वाले कुछ चलतू टाइप पत्रकार और प्रेस क्लब की शोभा बढ़ाने वाले सदस्य पत्रकार का नाम पेशबंदी में शामिल मिला । जब खुलासा हुआ तो माइक की आवाज कांपने लगी और कैमरा लजा गया, और फेसबुक पर “सफाई पोस्ट” की बाढ़ आ गई…लेकिन जब उसी टाइमलाइन पर थोड़ा नीचे स्क्रॉल किया, तो नई स्कूटी पर मुस्कराते हुए एक पत्रकार साहब नज़र आते हैं और कैप्शन में लिखा है…“शुक्रिया, इकरार भाई,आपने हीरो की विडा बाइक की चाभी मुझे दी ! अब इस कैप्शन और पोस्ट का मतलब क्या समझा जाये ? क्या “धिक्कारिता की चाभी” मिलने की खुशी में “पेटकार साहब” इतने ज्यादा लहालोट थे, कि अपनी पोस्ट में “स्कूटी को बाइक” और “दी को ही” लिख बैठे ? अब “दरबार से शुरू होकर दरगाह” तक औंधे मुँह गिरने वाली “मुतवल्ली मार्केटिंग एजेंसी” के पत्रकार का इतना इनाम बनना तो जायज ही कहलायेगा । आपने अपनी पोस्ट में बिल्कुल सही लिखा है “पेटकार साहब” कि आप टुच्चे टाइप के एक सड़क छाप अपराधी के इस अहसान के बदले जीवन भर उनके आभारी रहेंगे । बिल्कुल सही कहा आपने पेटकार साहब…ये तो स्कूटी है ….कहीं अगर आपको “आल्टो” मिल गयी होती तो आप उस आभार के लिए जॉन अब्राहम की दूसरी “दोस्ताना” बना डालते !
जहाँ कलम बिके, वहाँ खबर नहीं, खबरिया पैदा होते हैं।”

ये कोई पहली स्कूटी नही है..जो पत्रकारिता के ईमान और इज्जत को तार-तार करने के एवज में पहली बार शोरूम से निकली है । अब इस गिफ्ट आइटम का ज्यादा हो हल्ला मचाना कत्तई ठीक नही है क्योंकि इससे पहले भी ऐसे इनाम मिल चुके हैं…..यकीन न आये तो “अखबारी धुरंधर पांडे जी” की स्कूटी को ही देख लीजिए.. थोड़ी पुरानी जरूर हो गयी है… लेकिन पत्रकारिता के मान-सम्मान रूपी सड़क को……बराबर रौंदते हुए आज भी अपनी फुल स्पीड से चलती है !

