“सेटिंग पहनिए, हेलमेट नहीं”..क्योंकि गोरखपुर में “कानून” भी पहचान देखता है !

गोरखपुर : चरण चाटन, भाटकालीन पत्रकारिता के नए उत्तंग शिखरों को स्पर्श करती हुई एक और नायाब पोस्ट में आप सभी का स्वागत है । मुझे याद है कि एक बार मैंने एक व्हाट्सएप्प स्टेटस लगाया था ! स्टेटस कुछ यूं था कि….

“लौंडिया लंदन से लाएंगे रात भर डीजे बजायेंगे ! मैं इस गाने के सख्त खिलाफ हूँ ….क्योंकि एक बार इटली से लाये थे और आज तक भारत का डीजे बज रहा है”।

इस स्टेटस के ठीक10 मिनट बाद ही उस वक्त एक नेताजी का फोन आ गया था और उन्होंने मुझे हड़काया भी खूब था ।

खैर, आजकल तो लिखने पढ़ने से कोई फर्क पड़ना लगभग बंद सा हो गया है । गोरखपुर की हवा भी इन दिनों कुछ इस क़दर खास हो चली है, कि इसमें संविधान की नहीं बल्कि सेटिंग की खुशबू तैर रही है । ट्रैफिक पुलिस के चबूतरे से लेकर चाय वाले के गिलास तक, सब जगह “जुगाड़ का लोकतंत्र” मचल रहा है । दिन रात ट्रैफिक ऑफिस पर डेरा जमाने वाले हमारे “झोलाछाप पत्रकार” साहब किसी कवि से कम नहीं । बस फर्क इतना है कि उनकी कविता माइक पर नहीं, हेलमेट के बिना हाईवे पर फर्राटा भरते हुए उनके खुद के कैमरे में ही कैद हो जाती है । और सबसे ज्यादा मजे की बात तो यह है कि अपनी इस बेहयाई का वीडियो जनता के बीच सोशल मीडिया में खुद अपने ही हाथों से वायरल किया जाता है । मंजन, कुल्ला और दातून का “आधिकारिक ठिकाना” अब भी वही सरकारी चबूतरा है ….जिसका लोकार्पण तत्कालीन एस पी ट्रैफिक आदित्य साहब अपने हाथों से कर गए थे । आदित्य साहब के इस अतुलनीय योगदान को गोरखपुर का झोलाछाप पत्रकारिता जगत कभी भुला नही सकेगा ! क्योंकि बेरोजगारों को रोजगार देने की जिम्मेदारी को सरकार की बजाय उन्होंने बखूबी निभाया और  झोलाछापों के लिए एक ऐसे “हाल्ट” की स्थापना कर डाली… जहाँ से पत्रकार के नाम पर पत्रकारिता का जनाजा रोज धूमधाम से निकलता रहा !

यहाँ ट्रैफिक रूल्स की तो बात ही मत करिए क्योंकि वो तो आम जनता की सजावट है । “सेटिंगबाज वर्ग” के लिए तो शायद मोटर व्हीकल एक्ट में कोई विशेष अनुच्छेद जोड़ा गया होगा “धारा (1/2) ! उसके लिए जो पत्रकार बनकर पत्रकारिता की शवयात्रा निरंतर निकालता रहे ! आप बगैर हेलमेट के निकलकर देखिए तो, उसी पल यातायात पुलिस की “पुलिसिया तंद्रा” टूट जाएगी । चालान मशीन झट से चालू, और जुर्माने की पर्ची ऐसे निकलेगी जैसे टिकट ब्लैक में बिक रही हो । मगर वही गलती जब हमारे “सेटिंगबाज प्रेस” के मसीहा करते हैं, तो नियमों को मिर्ची लग जाती है…और वो धारा-उपधारा किसी ठंडे बस्ते के सुसुप्त अवस्था मे चली जाती है । जो सरकारी चबूतरे पर कुल्ला करने का लाइसेंस रखते हों उन्हें ट्रैफिक नियमो से छूट दी जाती है । यही वजह है कि पहले पत्रकारों को “सम्मान की नजर” से देखा जाता था और अब “सामान की नजर से” ! बोली लगाइए और ले जाइए ! क्या आप मे भी हैं दम…जो इस बेअंदाजी से बगैर हेलमेट के बाइक राइडिंग की वीडियो बना सकें ?

अगर कोई आम आदमी ऐसा करे, तो यातायात पुलिस की नींद ऐसे टूटती है जैसे किसी ने अलार्म में करंट डाल दिया हो । चालान मशीन ऐसे गरजती है जैसे किसी युद्ध में तोप दागी जा रही हो । नियम कानून की चाबुक ऐसे चलती है जैसे कोई युद्ध अपराध कर दिया हो । मगर हमारे कथित पत्रकार साहब के लिए तो सड़कों पर भी रेड कार्पेट बिछा है । “खोपड़ी पर हेलमेट की जगह अहंकार ,और नियमों की जगह रीलें ! तो अगली बार जब कोई ट्रैफिक कर्मी चालान की पर्ची आपके सामने लहराए, तो उसे यह वीडियो दिखाइए और पूछिए — कि महोदय, ये आपके हैं कौन …और इन्हें किस सेक्शन में माफी दी गई है ?

By systemkasach

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का खुद का चेहरा कितना विद्रूप और घिनौना है..ये आप इस पेज पर देख और समझ सकते हैं । एक ऐसा पेज, जो समाज को आईना दिखाने वाले "लोकतंत्र के चौथे स्तंभ" को ही आइना दिखाता है । दूसरों की फर्जी ख़बर छापने वाले यहाँ खुद ख़बर बन जाते हैं ।

Related Post