बहुत मुश्किल है “पत्रकारिता” तेरा फिर से सँवर जाना…
तेरी ज़ुल्फ़ों का पेंच… कभी ख़त्म ही नहीं होता !”
गोरखपुर : आज फिर एक बार पत्रकारिता नाम की “मीना बाई” को “गोरखपुर प्रेस क्लब” की ड्योढ़ी से बेच दिया गया । प्राप्त जानकारी के अनुसार “ईश्वर चंद जायसवाल” मामले की पीड़िता “प्रेस क्लब” तो पहुँची लेकिन अपनी गाड़ी से नही उतरी । लेकिन “ख़बरवीर” खुद ही पीड़िता की गाड़ी में बैठ गए और पीड़िता का इंटरव्यू ले लिया । बताया जा रहा है कि एक तरफ “फेसबुक के पन्ने” पर इस ख़बर को “टाइम बम” की तरह दाग दिया गया तो दूसरी तरफ पीड़िता की बाइट को “अमोघ अस्त्र” बनाकर ईश्वर चंद जायसवाल की ड्योढ़ी पर दस्तक देने हमारे “लोकतंत्र के चौथे स्तंभ” की गाड़ी पहुँच गयी । बस फिर क्या था ? उसके कुछ देर बाद ही फेसबुक के पन्ने पर ख़बर बनकर लहराने वाले लिंक की “अकस्मात” मृत्यु हो गई । अब ख़बर की लिंक नहीं खुल रही ! आप भी समझ सकते हैं कि, क्यों और कैसे ?
मतलब ईश्वर चंद जायसवाल का मुद्दा जैसे ही हाथ लगा वैसे ही ख़बरवीरों ने “क्रांति की मशाल” जला ली..और कुछ देर बाद अपने पत्रकारिता की मशाल को खुद ही अपने “मूत्र” में विसर्जित भी कर दिया । प्राचीन काल में जब सभ्यता का विकास नहीं हुआ था और मनुष्य पत्थरों से शिकार कर पशुओं का कच्चा मांस खाता था । ठीक कुछ उसी तरह से आज इस दौर में हर ज़िले, हर ब्लॉक, हर तहसील में, “पत्रकारिता के पशु” को “कमीशन के पत्थरों” से मार मार कर, उसकी हड्डियाँ तक चबा ली जा रही हैं ? नींबू डालने से जितना तेजी से दूध नहीं फट रहा… उससे ज्यादा तो आजकल “ख़बरवीरों” की साफ सुथरा काम करने में फट रही है । पत्रकारिता के मीना बाई की नीलामी प्रक्रिया में भाँड़ बढ़ चढ़ कर बोली लगा रहे हैं ..पत्रकारिता की द्रौपदी का चीरहरण भरी सभा मे हो रहा है…जो भी हो रहा है वो “खुल्लम खुल्ला” हो रहा है… लेकिन प्रेस क्लब के जिम्मेदार “हस्तिनापुर के धृतराष्ट्र” की तरह मौन साधे बैठे हैं !

पीड़ित पक्ष ने “सिस्टम वेबसाइट मीडिया” से संपर्क करते हुए साफ तौर पर बताया है कि पहले खबर चलाई गई और फिर हटा दी गयी । वजह पूछने पर बताया गया कि हमे ख़बर हटाने के लिए इतना “माल” मिला है । अब तो “मीना बाई” भी कंफ्यूज है और सोच रही है कि मार्केट में “कंपटीशन” बहुत बढ़ गया है । जितनी बार “नवाबों की गलियों” में आज तक वो खुद नही बिकी….उससे कहीं ज्यादा तो ये पत्रकारी भाँड़ बिक़ रहे हैं !
इन पत्रकारों का हाल देखकर मीना कुमारी की “पाकीजा” फ़िल्म का वो गीत “खुद ब खुद” मन मे तैर जाता है ।
इन्ही लोगों ने..इन्ही लोगोँ ने…
इन्ही लोगों ने ले ली न…दुपट्टा मेरा !
पुराने पत्रकारों को याद हो तो याद कीजिये…कि ये वहीं गोरखपुर है जहाँ अधिकारी पत्रकारों से दोस्ती करने की खातिर “सिनेमा हाल” तक जाकर फिल्में देख आते थे । लेकिन आज तमाम “कुकुरमुत्ते रूपी पत्रकार” सिर्फ इस “गुणा गणित” में रहते हैं कि किसी तरह साहब बस हमे पहचान लें…. धिक्कार है ! यही वजह है कि पहले पत्रकारों को “सम्मान की नजर” से देखा जाता था और अब “सामान” की नजर से …बोली लगाइए और ले जाइए !
नोट : “सिस्टम वेबसाइट मीडिया” पर प्रसारित यह खबर किसी ईश्वर चंद पर नही बल्कि मीडिया की भांड़गिरी पर आधारित है ! ..उक्त ईश्वर चंद के विषय मे मीडिया पर प्रसारित किसी भी खबर का कोई भी पुष्टिकारक साक्ष्य अभी सिस्टम वेबसाइट मीडिया के पास उपलब्ध नही है । सिस्टम वेबसाइट मीडिया कभी भी शिकायत, आरोप या मात्र मुकदमा दर्ज होने की घटना को लेकर कभी कोई खबर प्रसारित करने में यकीन नही रखता.. जब तक कि घटना के सम्बंध में कोई पुख्ता साक्ष्य मौजूद न हो ।

